Jagannath Puri Rath Yatra (रथयात्रा) Date :- 07-07-2024

The Jagannath Puri Rath Yatra , Date :- 07-07-2024
कहते हैं कि राजा इन्द्रद्युम्न, जो सपरिवार नीलांचल सागर (उड़ीसा) के पास रहते थे, को समुद्र में एक विशालकाय काष्ठ दिखा। राजा के उससे विष्णु मूर्ति का निर्माण कराने का निश्चय करते ही वृद्ध बढ़ई के रूप में विश्वकर्मा जी स्वयं प्रस्तुत हो गए। उन्होंने मूर्ति बनाने के लिए एक शर्त रखी कि मैं जिस घर में मूर्ति बनाऊँगा उसमें मूर्ति के पूर्णरूपेण बन जाने तक कोई न आए। राजा ने इसे मान लिया। आज जिस जगह पर श्रीजगन्नाथ जी का मन्दिर है उसी के पास एक घर के अंदर वे मूर्ति निर्माण में लग गए। राजा के परिवारजनों को यह ज्ञात न था कि वह वृद्ध बढ़ई कौन है। कई दिन तक घर का द्वार बंद रहने पर महारानी ने सोचा कि बिना खाए-पिये वह बढ़ई कैसे काम कर सकेगा। अब तक वह जीवित भी होगा या मर गया होगा। महारानी ने महाराजा को अपनी सहज शंका से अवगत करवाया। महाराजा के द्वार खुलवाने पर वह वृद्ध बढ़ई कहीं नहीं मिला लेकिन उसके द्वारा अर्द्धनिर्मित श्री जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की काष्ठ मूर्तियाँ वहाँ पर मिली।
महाराजा और महारानी दुखी हो उठे। लेकिन उसी क्षण दोनों ने आकाशवाणी सुनी, 'व्यर्थ दु:खी मत हो, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो।' आज भी वे अपूर्ण और अस्पष्ट मूर्तियाँ पुरुषोत्तम पुरी की रथयात्रा और मन्दिर में सुशोभित व प्रतिष्ठित हैं। रथयात्रा माता सुभद्रा के द्वारिका भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण व बलराम ने अलग रथों में बैठकर करवाई थी। माता सुभद्रा की नगर भ्रमण की स्मृति में यह रथयात्रा पुरी में हर वर्ष होती है।जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा कब और कैसे मनाई जाती है? जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (जून-जुलाई) को मनाई जाती है। यह उत्सव ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ के तीन रथों की भव्य यात्रा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के विशाल रथों को भक्तगण खींचते हैं। जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का पौराणिक महत्व क्या है? जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का पौराणिक महत्व भगवान जगन्नाथ के अपने जन्मस्थान गुंडिचा मंदिर की यात्रा से जुड़ा है। यह यात्रा बताती है कि भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के करीब रहना चाहते हैं और उनके साथ समय बिताना चाहते हैं। जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है? जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का धार्मिक महत्व भगवान जगन्नाथ की पूजा और उनके दर्शन से जुड़ा है। लाखों भक्त इस अवसर पर पुरी आते हैं और भगवान के रथों को खींचकर पुण्य प्राप्त करते हैं। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, रथ यात्रा एक भव्य सामाजिक उत्सव है। इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोकनृत्य, और भक्ति संगीत का आयोजन किया जाता है, जो भारतीय संस्कृति की विविधता को दर्शाता है। जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा की तैयारी कैसे होती है? रथ यात्रा की तैयारी कई सप्ताह पहले से शुरू हो जाती है। पुरी में भगवान जगन्नाथ के मंदिर की सफाई और सजावट की जाती है। विशेष रथ बनाए जाते हैं और इन्हें सजाने के लिए लकड़ी, कपड़ा, और फूलों का उपयोग किया जाता है। जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का उत्सव कैसे मनाया जाता है? रथ यात्रा के दिन, सुबह भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को विधिवत रूप से रथों पर स्थापित किया जाता है। भक्तगण इन रथों को खींचते हैं और गुंडिचा मंदिर तक की यात्रा करते हैं। वहां भगवान जगन्नाथ एक सप्ताह तक रहते हैं और फिर वापस अपने मंदिर में लौटते हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा कैसे मनाई जाती है? भारत के विभिन्न हिस्सों में जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। ओडिशा में यह उत्सव सबसे भव्य रूप में मनाया जाता है, जबकि पश्चिम बंगाल, गुजरात और अन्य राज्यों में भी रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का समग्र महत्व क्या है? जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह उत्सव धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और लोगों के बीच प्रेम, भाईचारा और सौहार्द को बढ़ावा देता है। इस प्रकार, जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का उत्सव न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में भारतीयों द्वारा बड़े हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व हमें अपने जीवन में खुशियों, समृद्धि और शांति की ओर अग्रसर करता है और समाज में एकजुटता और प्रेम का संदेश फैलाता है।

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