ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त ९७

ऋग्वेद - प्रथम मंडल सूक्त ९७ ऋषि - कुत्स अंगीरसः: देवता-अग्नि, शुचिरग्रिर्वा । छंद -गायत्री अप नः शोशुचदघमग्ने शुशुग्ध्या रयिम् । अप नः शोशुचदघम् ॥१॥ हे अग्निदेव ! आप हमारे पापों को भस्म करें। हमारे चारों ओर ऐश्वर्य को प्रकाशित करें। हमारे पापों को विनष्ट करें ॥१॥ सुक्षेत्रिया सुगातुया वसूया च यजामहे । अप नः शोशुचदघम् ॥२॥ हे अग्निदेव ! उत्तम क्षेत्र, उत्तम मार्ग और उत्तम धन की इच्छा से हमें आपका यजन करते हैं। आप हमारे पापों को विनष्ट करें ॥२॥ प्र यद्भन्दिष्ठ एषां प्रास्माकासश्च सूरयः । अप नः शोशुचदघम् ॥३॥ हे अग्निदेव ! हम सभी साधक वीरता और बुद्धि पूर्वक आपकी विशिष्ट प्रकार से भक्ति करते हैं। आप हमारे पापों को विनष्ट करें ॥३॥ प्र यत्ते अग्ने सूरयो जायेमहि प्र ते वयम् । अप नः शोशुचदघम् ॥४॥ हे अग्निदेव ! हम सभी और ये विद्वगण आपकी उपासना से आपके सदृश प्रकाशवान् हुए हैं, अतः आप हमारे पापों को विनष्ट करें ॥४॥ प्र यदग्नेः सहस्वतो विश्वतो यन्ति भानवः । अप नः शोशुचदघम् ॥५॥ इन बल सम्पन्न अग्निदेव की देदीप्यमान किरणें सर्वत्र फैल रही हैं, ऐसे वे अग्निदेव हमारे पापों को विनष्ट करें ॥५॥ त्वं हि विश्वतोमुख विश्वतः परिभूरसि । अप नः शोशुचदघम् ॥६॥ हे सर्वतोमुखी अग्निदेव! आप निश्चय ही सभी ओर व्याप्त होने वाले हैं, आप हमारे पापों को विनष्ट करें ॥६॥ द्विषो नो विश्वतोमुखाति नावेव पारय । अप नः शोशुचदघम् ॥७॥ हे सर्वतोमुखी अग्निदेव ! आप नौका के सदृश सभी शत्रुओं से हमें पार ले जाएँ। आप हमारे पापों को विनष्ट करें ॥७॥ स नः सिन्धुमिव नावयाति पर्षा स्वस्तये । अप नः शोशुचदघम् ॥८॥ हे अग्निदेव ! आप नौका द्वारा नदी के पार ले जाने के समान हिंसक शत्रुओं से हमें पार ले जाएँ। आप हमारे पापों को विनष्ट करें ॥८॥