ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त ११४

ऋग्वेद -प्रथम मंडल सूक्त ११४ ऋषि - कुत्स अंगिरसः: देवता- रुद्र । छंद - जगती, १०-११ त्रिष्टुप इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्र भरामहे मतीः । यथा शमसद्द्‌विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरम् ॥१॥ हमारी प्रजाओं और गवादि पशुओं को सुख की प्राप्ति हो। इस गाँव के सभी प्राणी बलशाली और उपद्रव रहित हों। हम अपनी बुद्धि को दुष्टों का नाश करने वाले वीरों के प्रेरक जटाधारी रुद्रदेव को समर्पित करते हैं॥१॥ मृळा नो रुद्रोत नो मयस्कृधि क्षयद्वीराय नमसा विधेम ते । यच्छं च योश्च मनुरायेजे पिता तदश्याम तव रुद्र प्रणीतिषु ॥२॥ हे रुद्रदेव ! हम सभी को स्वस्थ व निरोग रखते हुए सुख प्रदान करें । शूरों को आश्रय प्रदान करने वाले आपको हम नमन करते हैं । आप मनुष्यों का पालन करते हुए शान्ति और रोग प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करते हैं। हे रुद्रदेव ! हम आपकी उत्तम नीतियों का अनुगमन करें ॥२॥ अश्याम ते सुमतिं देवयज्यया क्षयद्वीरस्य तव रुद्र मीद्वः । सुम्नायन्निद्विशो अस्माकमा चरारिष्टवीरा जुहवाम ते हविः ॥३॥ हे कल्याणकारी रुद्रदेव! वीरों को आश्रय प्रदान करने वाली आपकी श्रेष्ठ बुद्धि को हम सब अर्जित करें। हमारे प्रजाजनों को अपने देव यजन अर्थात् श्रेष्ठ कर्मों द्वारा सुख देते हुए आप हमारे लिए अनुकूलता प्रदान करें। हमारे वीर अक्षय बल को प्राप्त करें, हम आपके निमित्त आहुतियाँ समर्पित करें ॥३॥ त्वेषं वयं रुद्रं यज्ञसाधं व‌ङ्कु कविमवसे नि ह्वयामहे । आरे अस्मदैव्यं हेळो अस्यतु सुमतिमिद्वयमस्या वृणीमहे ॥४॥ तेजस्विता सम्पन्न यज्ञीय सत्कर्मों के निर्वाहक स्फूर्तिवान्, ज्ञानवान् रुद्रदेव की हम सभी स्तुति करते हैं। वे हमें संरक्षण प्रदान करें। देव - - शक्तियों के क्रोध के भागीदार हम न बन सके, अपितु हम उनकी अनुकम्पा को प्राप्त करें ॥४॥ दिवो वराहमरुषं कपर्दिनं त्वेषं रूपं नमसा नि ह्वयामहे । हस्ते बिभ्रन्द्वेषजा वार्याणि शर्म वर्म च्छर्दिरस्मभ्यं यंसत् ॥५॥ सात्विक आहार ग्रहण करने वाले दीप्तियुक्त सुन्दर रूपवान् जटाधारी वीर का हम सादर आवाहन करते हैं। अपने हाथों में आरोग्य प्रदायक ओषधियों को धारण कर वे दिव्यलोक से अवतरित हों। हमें मानसिक शान्ति तथा बाहरी रोगों की प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करें। हमारे शरीरों में समाहित विषों को बाहर निकालें ॥५॥ इदं पित्रे मरुतामुच्यते वचः स्वादोः स्वादीयो रुद्राय वर्धनम् । रास्वा च नो अमृत मर्तभोजनं त्मने तोकाय तनयाय मृळ ॥६॥ हम मरुद्गण के पिता रुद्रदेव के लिए यह अति मधुर और कीर्तिवर्धक स्तोत्रगान करते हैं। है अमृतस्वरूप रुद्रदेव ! आप हम सभी के निमित्त उपभोग्य सामग्री प्रदान करें। हमें तथा हमारी सन्तानों को भी सुखी रखें ॥६॥ मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम् । मा नो वधीः पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः ॥७॥ हे रुद्रदेव ! हमारे ज्ञान और बल में सम्पन्न वृद्धों को पीड़ित न करें । हमारे छोटे बालकों की हिंसा न करें। हमारे बलवान् युवा पुरुषों को हिंसित न करें। हमारी गर्भस्थ सन्तानों को हिसित न करें और न ही हमारे माता-पिता को विनष्ट करें। इन सभी हमारे प्रिय जनों के शरीरों को कष्ट न पहुँचाएँ ॥७॥ मा नस्तोके तनये मा न आयौ मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः । वीरान्मा नो रुद्र भामितो वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे ॥८॥ हे रुद्रदेव ! हमारी पुत्र-पौत्रादि सन्तति, हमारे जीवन को, गौओं और अश्वों को आघात न पहुँचाएँ। आप हमारे शूरवीरों के विनाश के लिए क्रोधित न हों । हविष्यान्न प्रदान करने के लिए यज्ञस्थल में हम आपका आवाहन करते हैं॥८॥ उप ते स्तोमान्पशुपा इवाकरं रास्वा पितर्मरुतां सुम्नमस्मे । भद्रा हि ते सुमतिर्मृळयत्तमाथा वयमव इत्ते वृणीमहे ॥९॥ हे मरुद्गणों के पिता रुद्रदेव ! जिस प्रकार पशुओं के पालनकर्त्ता गोपाल प्रातः ग्रहण किये गये पशुओं को सायंकाल उनके स्वामी को सौंप देते हैं, उसी प्रकार आपकी कृपा से प्राप्त मन्त्रों को स्तुति रूप में आपको ही समर्पित करते हैं। आप हमें सुख प्रदान करें, आपकी कल्याणकारी बुद्धि अत्यधिक सुख प्रदान करने वाली है, अतएव हम सभी आपके संरक्षण की कामना करते हैं॥९॥ आरे ते गोघ्नमुत पूरुषघ्नं क्षयद्वीर सुम्नमस्मे ते अस्तु । मृळा च नो अधि च ब्रूहि देवाधा च नः शर्म यच्छ द्विबर्हाः ॥१०॥ हे वीरों के आश्रयदाता रुद्रदेव! पशुओं और मनुष्यों के लिए संहारक आपके शस्त्र हमें कोई कष्ट न पहुँचाएँ। हम सभी के लिए आपकी श्रेष्ठ प्रेरणाएँ प्राप्त हों तथा आप हम सभी को सुख-प्रदान करें । हे देव ! हमें विशेष मार्ग दर्शन दें तथा दो प्रकार की शक्तियों से युक्त आप हम सभी के निमित्त शान्ति प्रदान करें ॥१०॥ अवोचाम नमो अस्मा अवस्यवः शृणोतु नो हवं रुद्रो मरुत्वान् । तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः ॥११॥ सुरक्षा की कामना करने वाले हम सभी, रुद्रदेव को नमन हो, ऐसा उच्चारण करते हैं। मरुद्गणों के साथ वे रुद्रदेव हमारी प्रार्थना को सुनें । इस प्रकार हमारी अभीष्ट कामना को मित्र, वरुण, अदिति, समुद्र, पृथ्वी और दिव्यलोक सभी स्वीकार करें ॥११॥

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