ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त १०६

ऋग्वेद - प्रथम मंडल सूक्त १०६ ऋषि - कुत्स अंगिरसः: देवता- विश्वे देवाः, । छंद-जगती, ७ त्रिष्टुप इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमूतये मारुतं शर्धी अदितिं हवामहे । रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन ॥१॥ हम सभी अपने संरक्षणार्थ इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि, मरुद्गण और अदिति का आवाहन करते हैं। हे श्रेष्ठ धनदाता वसुओ ! आप जिस प्रकार रथ को दुर्गम मार्ग से निकालते हैं, वैसे ही सम्पूर्ण विपदाओं से हमें पार करें ॥१॥ त आदित्या आ गता सर्वतातये भूत देवा वृत्रतूर्येषु शम्भुवः । रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन ॥२॥ हे आदित्यगणो ! आप सभी हमारे अभीष्ट यज्ञ में आगमन करें। असुर संहारक युद्धों में हमारे लिए सुखप्रद् हों। हे श्रेष्ठ दानदाता वसुदेवो ! सभी विपदाओं से हमें आप उसी प्रकार पार करें, जैसे दुर्गम मार्ग से रथ को सावधानी पूर्वक निकालते हैं॥२॥ अवन्तु नः पितरः सुप्रवाचना उत देवी देवपुत्रे ऋतावृधा । रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन ॥३॥ श्रेष्ठ प्रशंसनीय सभी पितर और सत्य संवर्धक देवमाताएँ हमारी संरक्षक हों। हे श्रेष्ठ दानदाता वसुदेवो! आप रथ को दुर्गम मार्ग से निकालने की तरह ही सभी संकटों से हमें बाहर निकालें ॥३॥ नराशंसं वाजिनं वाजयन्निह क्षयद्वीरं पूषणं सुम्नैरीमहे । रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन ॥४॥ मनुष्यों द्वारा प्रशंसित, बलवान् वीर की शक्ति को संवर्धित करने वाले, वीरों के स्वामी पूषादेव की हम श्रेष्ठ मनोभावनाओं द्वारा स्तुति करते हैं। हे श्रेष्ठदानदाता वसुदेवो ! आप रथ को दुर्गम मार्ग से निकालने के समान ही सभी संकटों से हमें सुरक्षित करें ॥४॥ बृहस्पते सदमिन्नः सुगं कृधि शं योर्यत्ते मनुर्हितं तदीमहे । रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन ॥५॥ हे बृहस्पते ! हमारे मार्ग सदैव सर्वसुलभ करें । आपके पास जो मनुष्यों के कल्याणकारी, श्रेष्ठ, सुखप्रदायक और दुःख निवारक साधन हैं, वही हमारी कामना है। हे श्रेष्ठ दानदाता वसुदेवों ! आप रथ को दुर्गम मार्ग से निकालने के समान ही सभी संकटों से हमें संरक्षित करें ॥५॥ इन्द्रं कुत्सो वृत्रहणं शचीपतिं काटे निबाळ्ह ऋषिरह्वदूतये । रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन ॥६॥ पाप रूपी कुएँ में गिरे हुए कुत्स ऋषि ने शत्रु संहारक और सामर्थ्यवान् इन्द्रदेव को आवाहित किया। हे श्रेष्ठ दानदाता वसुदेवो ! रथ को कठिन मार्ग से वहन करने की तरह ही आप सभी पापों से हमें निवृत्त करें ॥६॥ देवैर्नो देव्यदितिर्नि पातु देवस्त्राता त्रायतामप्रयुच्छन् । तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः ॥७॥ देवमाता अदिति, देव समूह के साथ हमे संरक्षित करें । संरक्षण साधनों से युक्त अन्य देवगण भी आलस्य रहित होकर हमारी सुरक्षा करें। हमारी इस प्रार्थना को मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और द्युलोक आदि देवगण स्वीकार करें ॥७॥

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