ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त ७७

ऋग्वेद - प्रथम मंडल सूक्त ७८ ऋषि – गौतमो राहुगणः: देवता - अग्नि । छंद - त्रिष्टुप अभि त्वा गोतमा गिरा जातवेदो विचर्षणे । द्युम्नैरभि प्र णोनुमः ॥१॥ सृष्टि के समस्त रहस्यों को देखने में जानने वाले हे अग्निदेव ! गोतमवंशी हम उत्तम वाणियों से तेजस्वी मंत्रों का गान करते हुए आपका अभिवादन करते हैं ॥१॥ तमु त्वा गोतमो गिरा रायस्कामो दुवस्यति । द्युम्नैरभि प्र णोनुमः ॥२॥ हे अग्निदेव ! धन की कामना से गोतम-वंशी आपकी उत्तम वाणियों से परिचर्या करते हैं। तेजवी स्तोत्र से हम भी आपका अभिवादन करते हैं॥२॥ तमु त्वा वाजसातममङ्गिरस्वद्धवामहे । द्युम्नैरभि प्र णोनुमः ॥३॥ विपुल अन्नों को देने वाले हे अग्निदेव! म अंगिराओं के समाने आपका आवाहन करते हैं और नज़वी मंत्रों से आपको नमस्कार करते हैं॥३॥ तमु त्वा वृत्रहन्तमं यो दस्यूँरवधूनुषे । द्युम्नैरभि प्र णोनुमः ॥४॥ हम तेजस्वी मंत्रों से राक्षसों को कंपाने वाले अंधकार रूपी असुर का संहार करने वाले अग्निदेव का म्नवन करते हैं॥४॥ अवोचाम रहूगणा अग्नये मधुमद्वचः । द्युम्नैरभि प्र णोनुमः ॥५॥ रहूगण वंशी हम लोग अग्निदेव के लिए मधुर स्तुतियाँ प्रस्तुत करते हैं। तेजस्व मंत्रों में आपको नमस्कार करते हैं॥५॥

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