ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त १७२

ऋग्वेद - प्रथम मंडल सूक्त १७२ ऋषि - अगस्त्यो मैत्रावारुणिः देवता- मरुतः। छंद - गायत्री चित्रो वोऽस्तु यामश्चित्र ऊती सुदानवः । मरुतो अहिभानवः ॥१॥ हे श्रेष्ठ दानवीर, अक्षय तेजसम्पन्न मरुतो ! आपकी गति आश्चर्यजनक हैं, संरक्षण सामर्थ्य भी विलक्षण हैं॥१॥ आरे सा वः सुदानवो मरुत ऋञ्जती शरुः । आरे अश्मा यमस्यथ ॥२॥ हे श्रेष्ठ दानवीर मरुद्गण! आपके तीव्र गति से, शत्रु समूह पर फेंके गये शस्त्र हमसे दूर रहें। जिस वज्र से आप शत्रुओं पर प्रहार करें, वह भी हमसे दूर ही रहे ॥२॥ तृणस्कन्दस्य नु विशः परि वृङ्क्त सुदानवः । ऊर्ध्वान्नः कर्त जीवसे ॥३॥ हे श्रेष्ठ दानवीर मरुद्गण! तिनके के समान सुगमता से नष्ट होने वाले इन प्रजाजनों को आप पतन के मार्ग से रोकें। हम प्रजाजनों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाकर दीर्घायु प्रदान करे ॥३॥

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