ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त ८२

ऋग्वेद - प्रथम मंडल सूक्त ८२ ऋषि – गौतमो राहुगणः: देवता- इन्द्र । छंद - पंक्ति, जगती उपो षु शृणुही गिरो मघवन्मातथा इव । यदा नः सूनृतावतः कर आदर्थयास इद्योजा न्विन्द्र ते हरी ॥१॥ हे धनवान् इन्द्रदेव ! हमारे स्तोत्रों को निकट से भली प्रकार सुनें । आप हमें सत्यभाषी बनायें। हमारी स्तुतियों को ग्रहण करने वाले आप अश्वों को आगमन के निमित्त नियोजित करें ॥१॥ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत । अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजा न्विन्द्र ते हरी ॥२॥ हे इन्द्रदेव ! आपके अन्न से तृप्त हुए ब्राह्मणों ने अपने आनन्द को व्यक्त करते हुए सिर हिलाया और फिर उन्होंने अभिनव स्तोत्रों का पाठ किया। अब आप अपने अश्वों को यज्ञ में प्रस्थान के लिए नियोजित करें ॥२॥ सुसंदृशं त्वा वयं मघवन्वन्दिषीमहि । प्र नूनं पूर्णवन्धुरः स्तुतो याहि वशाँ अनु योजा न्विन्द्र ते हरी ॥३॥ हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव ! हम सभी प्राणियों के प्रति अनुग्रह दृष्टि रखने वाले आपकी अर्चना करते हैं। स्तोताओं को देने वाले धन से परिपूर्ण रथ वाले, कामनायुक्त यजमानों के पास शीघ्र ही आते हैं। हे स्तुत्य इन्द्रदेव ! आप 'हरी' नामक अश्वों को रथ में नियोजित करें ॥३॥ स घा तं वृषणं रथमधि तिष्ठाति गोविदम् । यः पात्रं हारियोजनं पूर्णमिन्द्र चिकेतति योजा न्विन्द्र ते हरी ॥४॥ हे इन्द्रदेव ! आप-अन्न सोम आदि से पूर्ण गायों को देने में समर्थ और दृढ़ रथ को भली प्रकार जानते हैं। तथा उसी पर आसीन होते हैं। अतः हे इन्द्रदेव! आप अपने घोड़ों को रथ में जोड़े ॥४॥ युक्तस्ते अस्तु दक्षिण उत सव्यः शतक्रतो । तेन जायामुप प्रियां मन्दानो याह्यन्धसो योजा न्विन्द्र ते हरी ॥५॥ हे शतकर्मा इन्द्रदेव ! आपके दाहिनी और बायीं ओर दो अश्व रथ में जुते हैं। इन दोनों अश्वों से नियोजित रथ को लेकर प्रिय पत्नी के पास जायें। उसी रथ से आकर हमारे हविष्यान्न को ग्रहण करके हर्षित हों ॥५॥ युनज्मि ते ब्रह्मणा केशिना हरी उप प्र याहि दधिषे गभस्त्योः । उत्त्वा सुतासो रभसा अमन्दिषुः पूषण्वान्वज्रिन्त्समु पत्यामदः ॥६॥ है वज्रधारी इन्द्रदेव ! आपके केशयुक्त अश्वों को हम मन्त्रयुक्त स्तोत्रों से रथ में नियोजित करते हैं। आप अपने हाथों में रास (लगाम) धारण कर घर जायें। वेग पूर्वक प्रवाहित होने वाले सोमरस ने आपको हर्षित किया है। घर में पत्नी के साथ सोम से हर्षित होकर आप पुष्टि को प्राप्त हों ॥६॥

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