ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त १११

ऋग्वेद -प्रथम मंडल सूक्त १११ ऋषि – कुत्स अंगिरसः: देवता- ऋभवः। छंद जगती, ५ त्रिष्टुप तक्षत्रथं सुवृतं विद्मनापसस्तक्षन्हरी इन्द्रवाहा वृषण्वसू । तक्षन्पितृभ्यामृभवो युवद्वयस्तक्षन्वत्साय मातरं सचाभुवम् ॥१॥ कुशल विज्ञानी ऋभुदेवों ने उत्तम रथ को अच्छी प्रकार से तैयार किया। इन्द्रदेव के रथ वाहक घोड़े भी भली प्रकार प्रशिक्षित किए। वृद्ध माता-पिता को श्रेष्ठ मार्गदर्शन देकर तरुणोचित उत्साह प्रदान किया तथा माता को बच्चे के साथ रहने के लिए तैयार किया ॥१॥ आ नो यज्ञाय तक्षत ऋभुमद्वयः क्रत्वे दक्षाय सुप्रजावतीमिषम् । यथा क्षयाम सर्ववीरया विशा तन्नः शर्धाय धासथा स्विन्द्रियम् ॥२॥ हे ऋभु देवो ! हमें यज्ञीय सत्कर्मों के लिए तेजस्विता प्रधान जीवनी शक्ति प्रदान करें । श्रेष्ठ कर्मों और बल संवर्धन हेतु प्रजा को समृद्ध करने वाले पौष्टिक अन्न हमें प्रदान करें। संगठन के लिए हममें पर्याप्त शारीरिक सामर्थ्य पैदा करें ॥२॥ आ तक्षत सातिमस्मभ्यमृभवः सातिं रथाय सातिमर्वते नरः । सातिं नो जैत्रीं सं महेत विश्वहा जामिमजामिं पृतनासु सक्षणिम् ॥३॥ नेतृत्व करने वाले हे ऋभुओ! आप हमारे लिए वैभव, हमारे रथों के लिए सुन्दरता तथा अश्वों के लिए बल प्रदान करें। समर क्षेत्र में हमारे निकटस्थ सम्बन्धी या अपरिचित जो भी सम्मुख हों, हम उन्हें पराजित करें। हमें विजय योग्य विभूतियाँ प्रदान करें ॥३॥ ऋभुक्षणमिन्द्रमा हुव ऊतय ऋभून्वाजान्मरुतः सोमपीतये । उभा मित्रावरुणा नूनमश्विना ते नो हिन्वन्तु सातये धिये जिषे ॥४॥ हम अपनी सुरक्षा के लिए ऋभुओं के साथ रहने वाले इन्द्रदेव का आवाहन करते हैं। ऋभु, वाज, मरुत्, दोनों मित्र और वरुण तथा अश्विनी कुमार इन सभी देवों को सोमपान के लिए आवाहित करते हैं। वे धन, श्रेष्ठ बुद्धि और विजय प्राप्ति के लिए हमें प्रेरित करें ॥४॥ ऋभुर्भराय सं शिशातु सातिं समर्यजिद्वाजो अस्माँ अविष्टु । तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः ॥५॥ ऋभुगण हमें धन-धान्य से परिपूर्ण कर दें। युद्ध में विजय दिलाने वाले वाजादि देव हमारे संरक्षक हों। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और द्युलोक आदि देव हमारी कामना में सहायक हों ॥५॥

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