ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त ४२

ऋग्वेद - प्रथम मंडल सूक्त ४२ ऋषि - कण्वो घौरः देवता- पूषा । छंद - गायत्रीः सं पूषन्नध्वनस्तिर व्यंहो विमुचो नपात् । सक्ष्वा देव प्र णस्पुरः ॥१॥ हे पूषादेव ! हम पर सुखों को न्योछावर करें। पाप मार्गों से हमें पार लगाएँ । हे देव ! हमें आगे बढ़ाएँ ॥१॥ यो नः पूषन्नघो वृको दुःशेव आदिदेशति । अप स्म तं पथो जहि ॥२॥ हे पूषादेव ! जो हिंसक, चोर, जुआ खेलने वाले हम पर शासन करना चाहते हैं, उन्हें हम से दूर करें ॥२॥ अप त्यं परिपन्थिनं मुषीवाणं हुरश्चितम् । दूरमधि सुतेरज ॥३॥ उस मार्ग-प्रतिबन्धक, चोर और कपटी को मार्ग से दूर भगा दो ॥३॥ त्वं तस्य द्वयाविनोऽघशंसस्य कस्य चित् । पदाभि तिष्ठ तपुषिम् ॥४॥ जो कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष-दोनों प्रकार से हरण करता और अनिष्ट- साधन करता है। हे देव! उसकी पर-पीड़क देह को अपने पैरों से रौंद डालो ॥४॥ आ तत्ते दस्र मन्तुमः पूषन्नवो वृणीमहे । येन पितॄनचोदयः ॥५॥ अरि-मर्दन और ज्ञानी-पूषन् ! तुमने जिस रक्षा-शक्ति से पितरों को उत्साहित किया था, तुम्हारी उसी रक्षा-शक्ति के लिए हम प्रार्थना करते हैं॥५॥ अधा नो विश्वसौभग हिरण्यवाशीमत्तम । धनानि सुषणा कृधि ॥६॥ सर्व-सम्पत्शाली और विविध-स्वर्णास्त्र-सन्युक्त पूषन् ! हमारी प्रार्थना के अनन्तर हमारे निमित्त धन-समूह दान में परिणत करो ॥६॥ अति नः सश्चतो नय सुगा नः सुपथा कृणु । पूषन्निह क्रतुं विदः ॥७॥ बाधक शत्रुओं का अतिक्रम करके हमें ले जाओ । सुख-गम्य और सुन्दर मार्ग से हमें ले जाओ। पूषन् ! तुम इस मार्ग में हमारी रक्षा का उपाय करो ॥७॥ अभि सूयवसं नय न नवज्वारो अध्वने । पूषन्निह क्रतुं विदः ॥८॥ सुन्दर और तृण-युक्त देश में हमें ले जाओ। रास्ते में नया सन्ताप न होने पावे। पूषन् ! तुम इस मार्ग में हमारी रक्षा का उपाय करो ॥८॥ शग्धि पूर्धि प्र यंसि च शिशीहि प्रास्युदरम् । पूषन्निह क्रतुं विदः ॥९॥ हमारे ऊपर अनुग्रह करो। हमारा घर धन-धान्य से पूर्ण करो। अन्य अभीष्ट वस्तु भी हमें दान करो। हमें उग्र-तेजा करो। हमारी उदर- पूर्ति करो। पूषन् ! तुम इस मार्ग से हमारी रक्षा का उपाय करो ॥९॥ न पूषणं मेथामसि सूक्तैरभि गृणीमसि । वसूनि दस्ममीमहे ॥१०॥ हम पूषा की निन्दा नहीं कर सकते; उनकी स्तुति करते हैं। हम दर्शनीय पूषा के पास धन की याचना करते हैं॥१०॥

Recommendations