ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त ४९

ऋग्वेद - प्रथम मंडल सूक्त ४९ ऋषि - प्रस्कण्व काण्वः देवता- उषाः । छंद-अनुष्टुप उषो भद्रेभिरा गहि दिवश्चिद्रोचनादधि । वहन्त्वरुणप्सव उप त्वा सोमिनो गृहम् ॥१॥ हे देवी उषे ! द्युलोक के दीप्तिमान् स्थान से कल्याणकारी मार्गों द्वारा आप यहाँ आयें। अरुणिम वर्ण के अश्व आपको सोमयाग करने वाले के घर पहुँचाएँ ॥१॥ सुपेशसं सुखं रथं यमध्यस्था उषस्त्वम् । तेना सुश्रवसं जनं प्रावाद्य दुहितर्दिवः ॥२॥ हे आकाशपुत्री उषे ! आप जिस सुन्दर सुखप्रद रथ पर आरूढ़ हैं, उसी रथ से उत्तम हवि देने वाले याजक की सब प्रकार से रक्षा करें ॥२॥ वयश्चित्ते पतत्रिणो द्विपच्चतुष्पदर्जुनि । उषः प्रारन्नृतँरनु दिवो अन्तेभ्यस्परि ॥३॥ हे देदीप्यमान उषादेवि ! आपके (आकाशमण्डल पर) उदित होने के बाद मानव, पशु एवं पक्षी अन्तरिक्ष में दूर-दूर तक स्वेच्छानुसार विचरण करते हुए दिखाई देते हैं॥३॥ व्युच्छन्ती हि रश्मिभिर्विश्वमाभासि रोचनम् । तां त्वामुषर्वसूयवो गीर्भिः कण्वा अहूषत ॥४॥ हे उषादेवी ! उदित होते हुए आप अपनी किरणों से सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करती हैं। धन की कामना करने वाले कण्व वंशज आपका आवाहन करते हैं ॥४॥

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