ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त १०२

ऋग्वेद - प्रथम मंडल सूक्त १०२ ऋषि - कुत्स अंगिरसः: देवता-इन्द्र, । छंद -जगती, ११ त्रिष्टुप इमां ते धियं प्र भरे महो महीमस्य स्तोत्रे धिषणा यत्त आनजे । तमुत्सवे च प्रसवे च सासहिमिन्द्रं देवासः शवसामदन्ननु ॥१॥ हे महान् यशस्वी इन्द्रदेव! आप शत्रुओं को पराजित करके उन्नति को प्राप्त करने वाले हैं। हम उत्तम स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं। उत्साही देवगण अपने धनों की वृद्धि व रक्षा के लिए आपको प्रसन्न करते हैं ॥१॥ अस्य श्रवो नद्यः सप्त बिभ्रति द्यावाक्षामा पृथिवी दर्शतं वपुः । अस्मे सूर्याचन्द्रमसाभिचक्षे श्रद्धे कमिन्द्र चरतो वितर्तुरम् ॥२॥ इन इन्द्रदेव के कर्तृत्व (जल वर्षण) की कीर्ति को सप्तसरितायें (नदियाँ) तथा मनोहारी रूप को पृथ्वी, अन्तरिक्ष और स्वर्गलोक धारण करते हैं। हे इन्द्रदेव! आपकी तेजस्विता से प्रकाशित होकर सूर्यदेव और चन्द्रमा प्राणिमात्र को श्रद्धा युक्त ज्ञान एवं आलोक देने के लिए नियमपूर्वक गतिमान होते हैं॥२॥ तं स्मा रथं मघवन्प्राव सातये जैत्रं यं ते अनुमदाम संगमे । आजा न इन्द्र मनसा पुरुष्टुत त्वायद्भयो मघवञ्छर्म यच्छ नः ॥३॥ हे वैभव सम्पन्न इन्द्रदेव! आप हमारी विभिन्न प्रकार की प्रार्थनाओं से प्रसन्न हों। आपके जिस विजयी रथ को सेना के साथ, होने वाले संग्राम में देखकर हम आनन्दित होते हैं, उसी रथ को हमारी विजय के लिए प्रेरित करें। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव! आप हमें सुख प्रदान करें ॥३॥ वयं जयेम त्वया युजा वृतमस्माकमंशमुदवा भरेभरे । ं अस्मभ्यमिन्द्र वरिवः सुगं कृधि प्र शत्रूणां मघवन्वृष्ण्या रुज ॥४॥ हे ऐश्वर्य सम्पन्न इन्द्रदेव! आपके सहयोग से हम घिरे हुए शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें। आप प्रत्येक संग्राम में हमारे पक्ष की सुरक्षा करें, आप हमारे शत्रुओं की सामर्थ्य को क्षीण करें, जिससे हम प्राप्त धन का निर्विघ्न होकर उपभोग करने में समर्थ हों ॥४॥ नाना हि त्वा हवमाना जना इमे धनानां धर्तरवसा विपन्यवः । अस्माकं स्मा रथमा तिष्ठ सातये जैत्रं हीन्द्र निभृतं मनस्तव ॥५॥ धन को धारण करने वाले हे इन्द्रदेव । आपके आवाहनकर्ता और स्तोता अनेक मनुष्य हैं। अतएव आप सम्पत्ति प्रदान करने के लिए मात्र हमारे ही रथ पर आकर विराजमान हों। स्थिरतायुक्त आपका मन हमें विजयी बनाने में पूर्ण सक्षम हो ॥५॥ गोजिता बाहू अमितक्रतुः सिमः कर्मन्कर्मञ्छतमूतिः खजंकरः । अकल्प इन्द्रः प्रतिमानमोजसाथा जना वि हृयन्ते सिषासवः ॥६॥ बलवान् इन्द्रदेव की भुजाएँ गौओं को जीतने में सक्षम हैं। वे श्रेष्ठ इन्द्रदेव प्रत्येक कर्म में संरक्षण साधनों से सम्पन्न हैं। वे अतुलित शक्ति सामर्थ्ययुक्त, संघर्षशील, अद्वितीय पराक्रम की प्रतिमूर्ति हैं। इसलिए धन की कामना से मनुष्य उनका आवाहन करते हैं॥६॥ उत्ते शतान्मघवन्नुच्च भूयस उत्सहस्राद्रिरिचे कृष्टिषु श्रवः । अमात्रं त्वा धिषणा तित्विषे मह्यधा वृत्राणि जिघ्नसे पुरंदर ॥७॥ हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव ! मनुष्यों में आपकी कीर्ति सैकड़ों और हजारों रूपों से भी बढ़कर है। मनुष्यों की बृहत् प्रार्थनाएँ, अतुलित शक्तिशाली इन्द्रदेव की महिमा को प्रकट करती हैं। अभेद्य दुर्गों को तोड़ने में समर्थ हे इन्द्रदेव! आप वृत्रों (शत्रुओं) का हनन करने में समर्थ हैं॥७॥ त्रिविष्टिधातु प्रतिमानमोजसस्तिस्रो भूमीनृपते त्रीणि रोचना । अतीदं विश्वं भुवनं ववक्षिथाशत्रुरिन्द्र जनुषा सनादसि ॥८॥ हे मनुष्यों के संरक्षक इन्द्रदेव! आप तीनों लोकों में तीन रूपों सूर्य, अग्नि और विद्युत् में स्थित हैं, आप अपनी शक्ति सामर्थ्य से तीन भूमियों, तीन तेजों तथा इन सम्पूर्ण लोकों को संचालित कर रहे हैं। आप प्राचीन काल से (जन्म के समय से) ही शत्रुरहित हैं॥८॥ त्वां देवेषु प्रथमं हवामहे त्वं बभूथ पृतनासु सासहिः । सेमं नः कारुमुपमन्युमुद्भिदमिन्द्रः कृणोतु प्रसवे रथं पुरः ॥९॥ है इन्द्रदेव! आप देवों में सर्वश्रेष्ठ प्रधान रूप हैं, हम आपका आह्वान करते हैं। आप युद्धों में शत्रुओं को पराजित करने वाले हैं, अति क्रोध युक्त शत्रुओं को भी पीछे धकेलने वाले इस कलापूर्ण रथ को आप सदैव आगे रखें ॥९॥ त्वं जिगेथ न धना रुरोधिथार्भेष्वाजा मघवन्महत्सु च । त्वामुग्रमवसे सं शिशीमस्यथा न इन्द्र हवनेषु चोदय ॥१०॥ हे धनवान् इन्द्रदेव ! आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने पर, धनों को अपने तक सीमित नहीं रखते, (अर्थात् संग्रह नहीं करते, सत्पात्रों को बाँट देते हैं। छोटे और विशाल युद्धों में अपने संरक्षण हेतु योद्धागण इन्द्रदेव को ही बुलाते हैं। अतएव आप हमें उचित मार्गदर्शन प्रदान करें ॥१०॥ विश्वाहेन्द्रो अधिवक्ता नो अस्त्वपरिवृताः सनुयाम वाजम् । तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः ॥११॥ हे इन्द्रदेव ! आप सदैव हमारे पक्ष के अधिवक्ता हैं। हम भी द्वेष पूर्ण व्यवहार से रहित होकर अन्नादि प्राप्त करें, इसलिए मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और दिव्यलोक सभी हमें वैभव सम्पदा प्रदान करें ॥११॥

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