ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त ५९

ऋग्वेद - प्रथम मंडल सूक्त ५९ ऋषि - नोधा गौतम देवता - अग्नि वैश्वानरः छंद- त्रिष्टुप वया इदग्ने अग्नयस्ते अन्ये त्वे विश्वे अमृता मादयन्ते । वैश्वानर नाभिरसि क्षितीनां स्थूणेव जनाँ उपमिद्ययन्थ ॥१॥ हे अग्निदेव ! समस्त अग्नियाँ आपकी ज्वालाएँ हैं। सब देव आपसे आनन्द पाते हैं। हे वैश्वानर ! आप सब प्राणियों का पोषण करने वाले नाभि (केन्द्र) हैं। आप स्तम्भ (यूप) की तरह सभी लोगों के आधार रूप हैं॥१॥ मूर्धा दिवो नाभिरग्निः पृथिव्या अथाभवदरती रोदस्योः । तं त्वा देवासोऽजनयन्त देवं वैश्वानर ज्योतिरिदार्याय ॥२॥ ये अग्निदेव आकाश के शिर और पृथ्वी की नाभि हैं। (सूर्य रूप में आकाश के शीर्ष तथा यज्ञ रूप में पृथ्वी की नाभि हैं ।) ये आकाश- पृथ्वी के अधिपति हैं। इन देव को सभी देव प्रकट करते हैं। हे वैश्वानर अग्निदेव ! श्रेष्ठजनों के लिये भी आपने ज्योति रूप प्रकाश दिया है॥२॥ आ सूर्ये न रश्मयो ध्रुवासो वैश्वानरे दधिरेऽग्ना वसूनि । या पर्वतेष्वोषधीष्वप्सु या मानुषेष्वसि तस्य राजा ॥३॥ सूर्यदेव से सर्वदा प्रकाश किरणों के निःसृत होने के समान वैश्वानर अग्निदेव से सभी धन प्राप्त होते हैं। हे अग्निदेव! आप सभी पर्वतों, ओषधियों, जलों और मानवों में स्थित धनों के राजा हैं॥३॥ बृहती इव सूनवे रोदसी गिरो होता मनुष्यो न दक्षः । स्वर्वते सत्यशुष्माय पूर्वीर्वैश्वानराय नृतमाय यह्वीः ॥४॥ द्यावा-पृथिवी इस पु-रूप (गर्भ में रहने वाले) वैश्वानर अग्निदेव के लिये बृहत् स्वरूप को प्राप्त हुई हैं। मनुष्यों में श्रेष्ठ, ये होता प्रकाशित और सत्य बल से युक्त वैश्वानर अग्निदेव के लिये पुरातन स्तुतियों का गायन करते हैं ॥४॥ दिवश्चित्ते बृहतो जातवेदो वैश्वानर प्र रिरिचे महित्वम् । राजा कृष्टीनामसि मानुषीणां युधा देवेभ्यो वरिवश्चकर्थ ॥५॥ हे प्राणियों के ज्ञाता, मनुष्यों में व्याप्त अग्निदेव ! आपकी महत्ता व्यापक एवं द्युलोक से भी अधिक बड़ी है। आप मानव मात्र के अधिपति हैं। संघर्षशील हमारा जीवन दैवी सम्पदाओं से अभिपूरित हो ॥५॥ प्र नू महित्वं वृषभस्य वोचं यं पूरवो वृत्रहणं सचन्ते । वैश्वानरो दस्युमग्निर्जघन्वाँ अधूनोत्काष्ठा अव शम्बरं भेत् ॥६॥ अब उन बलवान् अग्निदेव की महत्ता का वर्णन करते हैं। ये वैश्वानर अग्निदेव जलों के चोर वृत्र का वध करते हैं। सब मनुष्य उस वृत्र नाशक अग्निदेव का आश्रय लेते हैं। दिशाओं को कम्पित करने वाले वे 'शंबर' असुर का भेदन करते हैं॥६॥ वैश्वानरो महिम्ना विश्वकृष्टिर्भरद्वाजेषु यजतो विभावा । शातवनेये शतिनीभिरग्निः पुरुणीथे जरते सूनृतावान् ॥७॥ ये वैश्वानर (विश्व पुरुष) अग्निदेव अपनी महिमा से सब मनुष्यों के स्वामी हैं। अन्नदाताओं में अतिपूजनीय और वैभवशाली हैं। 'शतवन' के पुत्र 'पुरुनीथ' के यज्ञ में सत्यवान् अग्निदेव की सैकड़ों स्तोत्रों से स्तुति की जाती है ॥७॥

Recommendations