Bhuvaneshwari(10 Mahavidya) (भुवनेश्वरी)

भुवनेश्वरी भुवनेश्वरी देवी भागवत में वर्णित मणिद्वीप की अधिष्ठात्री देवी हल्लेखा (हीं) मन्त्र की स्वरूपा शक्ति और और सृष्टि क्रम में महालक्ष्मी स्वरूपा आदि शक्ति भगवती भुवनेश्वरी शिव के समस्त लीला-विलास की सहचरी और निखिल प्रपञ्चों की आदि-कारण, सब की शक्ति और सब को नाना प्रकार से पोषण प्रदान करने वाली हैं। जगदम्बा भुवनेश्वरी का स्वरूप सौम्य और अङ्गकान्ति अरुण है। भक्तों को अभय एवं समस्त सिद्धियाँ प्रदान करना उनका स्वाभाविक गुण है। शास्त्रों में इनकी अपार महिमा बतायी गयी है। देवी का स्वरूप 'ह्रीं' इस बीजमन्त्र में सर्वदा विद्यमान है, जिसे देवी भागवत में देवी का 'प्रणव' कहा गया है । विश्व का अधिष्ठान त्र्यम्बक सदाशिव हैं, उनकी शक्ति 'भुवनेश्वरी' है। सोमात्मक अमृत से विश्व का आप्यायन (पोषण) हुआ करता है। इसीलिए भगवती ने अपने किरीट में चन्द्रमा धारण कर रखा है। ये ही भगवती त्रिभुवन का भरण-पोषण करती रहती है, जिसका संकेत उनके हाथ की मुद्रा करती है। ये उदीयमान सूर्यवत् कान्तिमती, त्रिनेत्रा एवं उन्नत कुचयुगला देवी हैं। कृपा दृष्टि की सूचना उनके मृदुहास्य (स्मेर) से मिलती है। शासनशक्ति के सूचक अंकुश, पाश आदि को भी वे धारण करती हैं ।