Papankusha Ekadashi (पापाकुंशा एकादशी) Date :- 13.10.2024

Papankusha Ekadashi (पापाकुंशा एकादशी) Date :- 13.10.2024 पापाकुंशा एकादशी शुभमुहूर्त (Papankusha Ekadashi Muhurat) आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 24 अक्टूबर को दोपहर 03:14 PM मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 25 अक्टूबर को दोपहर 12:32 PM मिनट पर समाप्त होगी। पापाकुंशा एकादशी का महत्व (Importance of Papankusha Ekadashi) इस एकादशी व्रत के समान अन्य कोई व्रत नहीं है। इस एकादशी में भगवान पद्मनाभ का पूजन और अर्चना की जाती है, जिससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। पापाकुंशा एकादशी हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के समान फल प्रदान करने वाली होती है।पदम् पुराण के अनुसार जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धा पूर्वक सुवर्ण,तिल,भूमि,गौ,अन्न,जल,जूते और छाते का दान करता है,उसे यमराज के दर्शन नही होते। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति इस एकादशी की रात्रि में जागरण करता है वह स्वर्ग का भागी बनता है। इस एकादशी के दिन दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। पापाकुंशा एकादशी पूजन विधि (Papankusha Ekadashi Puja Vidhi) इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखकर पूजा करनी चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा के लिए ईशान कोण श्रेष्ठ माना गया है। भगवान विष्णु को चन्दन,अक्षत,मोली,फल,फूल,मेवा आदि अर्पित करें। इसके बाद घी के दीपक जलाएं और उनका भोग लगाकर आरती उतारें। भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए पापाकुंशा एकादशी की कथा सुननी चाहिए,एवं 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जितना संभव हो जप करें। इस दिन एक समय फलाहार किया जाता है। एकादशी पर दान-पुण्य जरूर करना चाहिए। शाम के समय भी भगवान की आरती उतारें और ध्यान व कीर्तन करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन और अन्न का दान करने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।पापाकुंशा एकादशी कब और कैसे मनाई जाती है? पापाकुंशा एकादशी आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह त्योहार मुख्यतः भारत में मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। पापाकुंशा एकादशी का पौराणिक महत्व क्या है? पापाकुंशा एकादशी का पौराणिक महत्व भगवान विष्णु और उनके अवतारों से जुड़ा है। कथा के अनुसार, इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पापाकुंशा एकादशी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है? पापाकुंशा एकादशी का धार्मिक महत्व भगवान विष्णु की पूजा और उनके आशीर्वाद से जुड़ा है। इस दौरान लोग व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, पापाकुंशा एकादशी एक सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व है। यह उत्सव भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा और विश्वास को दर्शाता है और समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देता है। पापाकुंशा एकादशी की तैयारी कैसे होती है? पापाकुंशा एकादशी की तैयारी में लोग विशेष पूजा सामग्री का प्रबंध करते हैं। घरों और मंदिरों को सजाया जाता है और भगवान विष्णु की मूर्तियों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। लोग इस दौरान विशेष पकवान बनाते हैं और उन्हें भगवान विष्णु को अर्पित करते हैं। पापाकुंशा एकादशी का उत्सव कैसे मनाया जाता है? पापाकुंशा एकादशी के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और व्रत रखते हैं। दिन भर वे भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं। इस दौरान विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों का स्मरण किया जाता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में पापाकुंशा एकादशी कैसे मनाई जाती है? भारत के विभिन्न हिस्सों में पापाकुंशा एकादशी को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे विशेष धूमधाम से मनाया जाता है, जबकि दक्षिण भारत में भी इसे उतने ही उत्साह से मनाया जाता है। पश्चिम भारत में भी लोग भगवान विष्णु की पूजा और व्रत रखते हैं, जबकि पूर्वी भारत में इस दिन का विशेष महत्व होता है। पापाकुंशा एकादशी का समग्र महत्व क्या है? पापाकुंशा एकादशी केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देता है। इस प्रकार, पापाकुंशा एकादशी का उत्सव न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में भारतीयों द्वारा बड़े हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व हमें अपने जीवन में खुशियों, समृद्धि और शांति की ओर अग्रसर करता है और समाज में एकजुटता और प्रेम का संदेश फैलाता है।

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