Diwali (दीवाली) Date:- 2024-11-01

प्रदोष काल मुहूर्त (Pradosh Kaal Muhurat) Pradosh Kaal(प्रदोष काल) - 05:08 PM to 07:42 PM Vrishabha Kaal(वृषभ काल) - 05:53 PM to 07:50 PM Amavasya Tithi Begins(अमावस्या तिथि आरंभ) - 03:52 PM on Oct 31, 2024 Amavasya Tithi Ends(अमावस्या तिथि समाप्त) - 06:16 PM on Nov 01, 2024 Lakshmi Puja Muhurat Timing in other Cities (अन्य शहरों में लक्ष्मी पूजा मुहूर्त का समय) 06:54 PM to 08:33 PM, Oct 31 - Pune 05:36 PM to 06:16 PM - New Delhi 05:42 PM to 06:16 PM - Chennai 05:44 PM to 06:16 PM - Jaipur 05:44 PM to 06:16 PM - Hyderabad 05:37 PM to 06:16 PM - Gurgaon 05:35 PM to 06:16 PM - Chandigarh 05:45 PM to 06:16 PM - Kolkata 06:57 PM to 08:36 PM, Oct 31 - Mumbai 06:47 PM to 08:21 PM, Oct 31 - Bengaluru 06:52 PM to 08:35 PM, Oct 31 - Ahmedabad 05:35 PM to 06:16 PM - Noida निशिता काल मुहूर्त महानिशीता काल -11:07 बजे से11:59 अपराह्न सिंह काल -12:22 पूर्वाह्न से02:36 पूर्वाह्न ,02 नवंबर अमावस्या तिथि निशिता तिथि से मेल नहीं खाती अमावस्या तिथि प्रारम्भ -31 अक्टूबर 2024 को 03:52 PM अमावस्या तिथि समाप्त -06:16 PM पर नवम्बर 01, 2024 चौघड़िया पूजा मुहूर्त दिवाली लक्ष्मी पूजा के लिए शुभ चौघड़िया मुहूर्त प्रातःकाल का मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) -05:58 पूर्वाह्न से10:09 पूर्वाह्न दोपहर का मुहूर्त (चर) -03:44 अपराह्न से05:08 अपराह्न दोपहर का मुहूर्त (शुभ) -11:33 पूर्वाह्न से12:57 अपराह्न लक्ष्मी पूजा मुहूर्त दिवाली के अवसर पर लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है, और इसे प्रदोष काल के दौरान करना सबसे शुभ माना जाता है। यह समय सूर्यास्त के तुरंत बाद शुरू होता है और लगभग 2 घंटे 24 मिनट तक चलता है। कुछ लोग महानिशिता काल में पूजा करने का भी सुझाव देते हैं, लेकिन यह समय अधिकतर तांत्रिक समुदाय और अनुभवी पंडितों के लिए उपयुक्त होता है। आम जनता के लिए प्रदोष काल ही सबसे अच्छा माना जाता है। लक्ष्मी पूजा के लिए चौघड़िया मुहूर्त का उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये मुहूर्त केवल यात्रा के लिए अच्छे माने जाते हैं। लक्ष्मी पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय वही होता है जब प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न होता है। स्थिर का मतलब होता है अचल, यानी जो हिलता नहीं है। अगर स्थिर लग्न के समय पूजा की जाए, तो ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मीजी स्थायी रूप से आपके घर में निवास करती हैं। वृषभ लग्न को स्थिर माना जाता है, और यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ ओवरलैप करता है। हम आपको लक्ष्मी पूजा के लिए सटीक समय बताते हैं, जिसमें प्रदोष काल और स्थिर लग्न शामिल होते हैं। इसके अलावा, अमावस्या की भी प्रचलित होती है। हम स्थान के आधार पर मुहूर्त प्रदान करते हैं, इसलिए पूजा का शुभ समय जानने से पहले अपना शहर चुनें। दिवाली के दौरान, कई समुदाय, खासकर गुजराती व्यापारी, चोपड़ा पूजन करते हैं। इस पूजा में देवी लक्ष्मी की उपस्थिति में नए खाता-बही का उद्घाटन होता है, ताकि अगले वित्तीय वर्ष में उनके आशीर्वाद से समृद्धि प्राप्त हो सके। दिवाली पूजा को दीपावली पूजा और लक्ष्मी गणेश पूजन के नाम से भी जाना जाता है।दिवाली कब और कैसे मनाई जाती है? दिवाली कार्तिक मास में मनाई जाती है। यह त्योहार पांच दिनों तक चलता है और अमावस्या के दिन मनाया जाता है। दीवाली में हम लक्ष्मी जी और गणेश जी की पूजा करते हैं। इस दिन घरों और कार्यस्थलों को साफ किया जाता है, सजाया जाता है और दीयों और मोमबत्तियों से रोशन किया जाता है। रंगोली बनाई जाती है और पटाखे जलाए जाते हैं। दीवाली भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने और रावण पर विजय प्राप्त करने की खुशी में मनाई जाती है। यह प्रकाश के अंधकार पर और अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। दिवाली का पौराणिक महत्व क्या है? दीवाली का सबसे प्रमुख पौराणिक कथा भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने से जुड़ी है। भगवान राम ने इस अवधि के दौरान रावण का वध किया और अयोध्या लौटे। अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत के लिए पूरी नगरी को दीयों से सजाया और रोशनी की, जिससे दीवाली का पर्व प्रारंभ हुआ। यह त्योहार अच्छाई की बुराई पर विजय, प्रकाश की अंधकार पर विजय और धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक है। एक अन्य कथा के अनुसार, दीवाली को देवी लक्ष्मी के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इसलिए, इस दिन लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व होता है। दिवाली का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है? दिवाली का धार्मिक महत्व कई धार्मिक और पौराणिक कथाओं से जुड़ा है। यह दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए भी प्रसिद्ध है। लोग अपने घरों और कार्यस्थलों की सफाई करते हैं, उन्हें सजाते हैं और लक्ष्मी पूजा करते हैं ताकि उनके घरों में सुख-समृद्धि और धन-धान्य का वास हो। गणेश जी, जो कि विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता माने जाते हैं, की भी पूजा की जाती है। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, दीवाली सामाजिक और पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने का समय है। इस दिन लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर त्योहार का आनंद लेते हैं। मिठाइयों का आदान-प्रदान, नए कपड़ों का पहनना और घरों को सजाना दीवाली की परंपरा में शामिल है। दीवाली की तैयारी कैसे होती है? दीवाली की तैयारी कई हफ्तों पहले से शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, उन्हें रंग-बिरंगे रंगों से पेंट करते हैं और नये सजावट के सामान खरीदते हैं। दीवाली के दिन घरों के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है और दीयों और मोमबत्तियों से सजाया जाता है। बाजारों में विशेष प्रकार की सजावट के सामान, मिठाइयाँ, पटाखे और नये कपड़े खरीदे जाते हैं। दीवाली का उत्सव कैसे मनाया जाता है? दीवाली के दिन, लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। पूरे घर को दीयों और मोमबत्तियों से सजाया जाता है। शाम को लक्ष्मी पूजा की जाती है जिसमें देवी लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्तियों की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए श्लोक और मंत्र पढ़े जाते हैं। इसके बाद, लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ पटाखे जलाते हैं। पटाखे जलाना दीवाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो बच्चों और युवाओं के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है। दीवाली पर कौन सी मिठाइयाँ और विशेष भोजन बनाए जाते हैं? दीवाली पर विशेष प्रकार की मिठाइयाँ और पकवान बनाए जाते हैं। इनमें लड्डू, बर्फी, पेड़ा, गुझिया और चकली जैसे स्वादिष्ट व्यंजन शामिल होते हैं। लोग अपने रिश्तेदारों और मित्रों के घर मिठाइयाँ और उपहार लेकर जाते हैं। यह एक दूसरे के साथ मिठास बाँटने और खुशियों का आदान-प्रदान करने का समय होता है। व्यापारियों के लिए दीवाली का महत्व क्या है? व्यापारियों के लिए दीवाली का विशेष महत्व होता है। दीवाली के दिन व्यापारी अपने नए बहीखातों की शुरुआत करते हैं जिसे 'चोपड़ा पूजन' कहा जाता है। यह दिन व्यापारियों के लिए बहुत शुभ माना जाता है और वे इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा करते हैं। यह समय नए आरंभों और व्यापारिक समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण होता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में दीवाली कैसे मनाई जाती है? भारत के विभिन्न हिस्सों में दीवाली को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे काली पूजा के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र और गुजरात में इसे लक्ष्मी पूजन और बलिप्रतिप्रदा के रूप में मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे दीपावली के रूप में मनाया जाता है जहां नरकासुर वध की कथा को महत्व दिया जाता है। दीवाली का समग्र महत्व क्या है? दीवाली केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह त्योहार सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और लोगों के बीच प्रेम, भाईचारा और सौहार्द को बढ़ावा देता है। दीवाली का उत्सव हमें यह सिखाता है कि बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है और हमें अपने जीवन में प्रकाश और सकारात्मकता को अपनाना चाहिए। इस प्रकार, दीवाली का त्योहार न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में भारतीयों द्वारा बड़े हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व हमें अपने जीवन में खुशियों, समृद्धि और शांति की ओर अग्रसर करता है और समाज में एकजुटता और प्रेम का संदेश फैलाता है।

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