Saphala Ekadashi (सफला एकादशी) Date:- 2024-12-26

सफला एकादशी पररविवार, 7 जनवरी, 2024 (Saphala Ekadashi on Sunday, January 7, 2024) On 8th Jan, Parana Time - 06:37 AM to 08:45 AM On Parana Day Dwadashi End Moment - 11:58 PM एकादशी तिथि प्रारम्भ - 12:41 AM on Jan 07, 2024 एकादशी तिथि समाप्त - 12:46 AM on Jan 08, 2024 ### एकादशी व्रत का भोजन एकादशी व्रत का प्रकार व्यक्ति की इच्छा शक्ति और शारीरिक क्षमता के अनुसार तय किया जा सकता है। धार्मिक ग्रंथों में चार प्रमुख प्रकार के एकादशी व्रत बताए गए हैं: जलाहार व्रत: इस व्रत में केवल जल का सेवन किया जाता है। अधिकांश भक्त निर्जला एकादशी पर इस व्रत का पालन करते हैं, लेकिन इसे सभी एकादशी व्रतों पर रखा जा सकता है। क्षीरभोजी व्रत: इस व्रत में दूध और दूध से बने सभी उत्पादों का सेवन किया जाता है। इसमें दूध, घी, दही, माखन आदि शामिल हैं। फलाहारी व्रत: इस व्रत में केवल फलाहार किया जाता है, जैसे कि आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता आदि। पत्तेदार सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ वर्जित होते हैं। नक्तभोजी व्रत: इस व्रत में सूर्यास्त से ठीक पहले दिन में एक बार भोजन किया जाता है, जिसमें अनाज या अनाज से बने खाद्य पदार्थ नहीं होते, जैसे सेम, गेहूं, चावल और दालें। ### नक्तभोजी व्रत के लिए मुख्य आहार एकादशी व्रत के दौरान नक्तभोजी व्रत के लिए मुख्य आहार में शामिल हैं: साबूदाना: साबूदाने की खिचड़ी या खीर। सिंघाड़ा: पानी के कैल्ट्रोप और चेस्टनट के रूप में भी जाना जाता है। शकरकंदी: शकरकंदी की सब्जी या चाट। आलू: आलू के विभिन्न प्रकार के व्यंजन। मूंगफली: मूंगफली की चटनी या शकरकंदी के साथ। ### विवादित आहार कुट्टू आटा (बकव्हीट आटा) और सामक (बाजरा चावल) भी एकादशी के भोजन में शामिल होते हैं। हालांकि, इनकी वैधता पर विवाद है, क्योंकि इन्हें अर्ध-अनाज या छद्म अनाज माना जाता है। इसलिए उपवास के दौरान इनसे बचना बेहतर माना जाता है। इस प्रकार, एकादशी व्रत का पालन करते समय इन विविध प्रकार के व्रतों और आहार का ध्यान रखना चाहिए, जिससे धार्मिक नियमों का सटीक पालन हो सके।सफला एकादशी कब और कैसे मनाई जाती है? सफला एकादशी पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे सफलता प्राप्त होती है। सफला एकादशी का पौराणिक महत्व क्या है? सफला एकादशी का पौराणिक महत्व भगवान विष्णु से जुड़ा है। यह माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी कष्टों का निवारण होता है और उसे सफलता प्राप्त होती है। सफला एकादशी की तैयारी कैसे होती है? सफला एकादशी की तैयारी में लोग अपने घरों को साफ-सुथरा रखते हैं और विशेष पूजा सामग्री का प्रबंध करते हैं। पूजा की थाली में तिल, जल, पुष्प, धूप, दीपक, और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र शामिल होते हैं। इस दिन लोग ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके व्रत का संकल्प लेते हैं। सफला एकादशी का उत्सव कैसे मनाया जाता है? सफला एकादशी के दिन लोग उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है और विष्णु मंत्रों का जाप किया जाता है। शाम को दीपदान किया जाता है और भगवान विष्णु को भोग लगाया जाता है। व्रतधारी रात को जागरण करते हैं और भगवान का स्मरण करते हैं। सफला एकादशी का समग्र महत्व क्या है? सफला एकादशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देता है।सफला एकादशी ब्रह्मांड पुराणमें भगवान् श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवाद में सफला एकादशी का महात्म्य बताया गया है! युधिष्ठिर महाराज ने पूछा, "हे स्वामिन् ! पौष महीनेके कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम क्या है ? यह व्रत किस प्रकार करते हैं ? किस देवताकी पूजा करते है? इस के बारें में आप विस्तारसे कहिए ?" भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "राजेन्द्र ! बहुत बडे-बडे यज्ञ करने से जो आनंद प्राप्त होता है उससे अधिक आनंद इस व्रत पालन करनेवालेसे मुझे होता है ! यथाशक्ति विधिपूर्वक हर एक व्यक्ति को यह व्रत करना चाहिए ! भगवान् नारायणकी पूजा करें ! जिस तरह सर्पों में शेषनाग, पक्षियोंमें गरूड, देवताओंमें श्रीविष्णु और मानवोंमे ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सब व्रतोंमें एकादशी तिथि श्रेष्ठ है! हे राजन! सफला एकादशी के दिन नाममंत्र का उच्चारण करते हुए नारियल, सुपारी, आम, नींबू, अनार, आवला, लवंग, बेर आदि फलोंको अर्पण करके श्रीहलिकी पूजा करनी चाहिए ! धूप-दीपसे भगवानकी अर्चना करनी चाहिए ! सफला एकादशीको विशेष करके दीपदान करनेका भी विधान है! रात को वैष्णवोंके साथ भगवत्-कथा, कीर्तन करते हुए जागरण करे ! हजारों वर्षों की तपस्या से भी इस रात्रि के जागरण के फल की तुलना नही की जा सकती !" "हे नृपश्रेष्ठ ! अब इस सफला एकादशी की शुभदायी कथा सुनो! प्राचीन काल में चम्पावती नामक सुंदर नगरी महाराज माहिष्मताकी राजधानी थी ! उन्हें पांच पुत्र थे ! ज्येष्ठ पुत्र हमेशा पापकर्म करते हुए परस्त्री संग और वेश्यासक्त था ! अपने पिता का धन पापकर्मो में नष्ट किया ! वह दुराचारी ब्राह्मण, वैष्णव, देवताओंकी निंदा करता था ! उसके इन पापकर्मोंको देखकर राजाने उसका नाम लुम्भक रखा ! कुछ दिनों पश्चात पिता और दूसरे भाईयोंने उसे राज्यसे निकाल दिया ! लुभ्भक गहन वन में चला गया ! वन में रहते हुए लुभ्भक यात्रियोंको लूटने लगा ! एक दिन नगर में चोरी करने लुम्भक गया, तो सिपाहियोंने उसे पकड लिया ! अपने पिता का नाम कहने पर सिपाहियोंने उसे छोड दिया ! वह वापस वन में गया और मांस, फलहार पर जीवन-निर्वाह करने लगा ! वह दुष्ट प्राचीन बरगद पेड के नीचे विश्राम करता था ! वह पेड अत्यंत प्राचीन होते हुए उस वनमें उस वृक्ष को महान देवता माना जाता था ।" बहुत दिनों पश्चात संचित पुण्यप्रभावसे उसने एकदिन अनजाने एकादशी व्रत का पालन किया ! पौष महीने की कृष्ण पक्ष की दशमी को लुम्भक वृक्ष के फल खाकर और वस्त्रहीन रहनेसे रातभर ठंडीमें सो नही सका! लगभग वह बेहोश हो चुका था ! 'सफला' एकादशी दिन भी वह बेहोश ही रहा। दोपहर में उसे होश आया। उठकर अथक प्रयास से चलते हुए, भुख से व्याकुल वह गहन वन में गया। जब फलोंको साथ वह लौटा तब सूर्यास्त हो रहा था। इसलिए उस फलोंको वृक्ष के मूलमें रखा और प्रार्थना की, कि भगवान् लक्ष्मीपति विष्णु इन फलोंका स्वीकार करें। ऐसा कहकर लुम्भक उस रात भी नही सोया । इससे अनजाने में उसने व्रतपालन किया। उस समय आकाशवाणी हुई, "हे राजकुमार ! 'सफला' एकादशी के फल के प्रसाद से तुम्हे राज्य और पुत्र प्राप्ति होगी।" तब उसका मन परिवर्तन हुआ। उस समय से उसने अपनी बुद्धि भगवान् विष्णुके भजनमें लगायी। उसके बाद वह अपने पिताश्री के पास लौट गया, पिताने उसे राज्य दिया, अनुरूप राजकन्या के साथ विवाह करके बहुत वर्षों तक उत्तम राज्य करता रहा। भगवान विष्णुके वरदानसे उसे 'मनोज' नामक पुत्र की प्राप्ति हुई । मनोज जब राज्य संभालने योग्य हुआ तब लुम्भक ने आसक्तिरहित होकर राज्य त्याग दिया और भगवान् श्रीकृष्ण के शरणागत हो गया। इस प्रकार से सफला एकादशी के व्रत प्रभाव से इस जन्म में उसे सुख प्राप्त हुआ साथ ही मृत्यु पश्चात मोक्ष की भी प्राप्ति हुई। सफला एकादशी के पालन से तथा महिमा सुनने मनुष्य को राजसूय यज्ञ की प्राप्ति होती है।

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