Sriramarahasyopnishat Chapter 5 (श्रीरामरहस्योपनिषत् पंचमोऽध्यायः पाँचवाँ अध्याय)

॥ श्री हरि ॥ ॥ श्रीरामरहस्योपनिषत् ॥ ॥ पंचमोऽध्यायः पाँचवाँ अध्याय ॥ सनकाद्या मुनयो हनूमन्तं पप्रच्छुः । श्रीराममन्त्रार्थमनुब्रूहीति । हनूमान्होवाच । सर्वेषु राममन्त्रेषु मन्त्रराजः षडक्षरः । एकधाय द्विधा त्रेधा चतुर्धा पञ्चधा तथा ॥ १॥ षट्सप्तधाष्टधा चैव बहुधायं व्यवस्थितः । षडक्षरस्य माहात्म्यं शिवो जानाति तत्त्वतः ॥ २॥ सनकादि ऋषियों ने फिर हनुमान जी से पूछा - आप श्री राम मंत्रों का अर्थ बताइए। हनुमान जी ने कहा श्री राम का छह अक्षरों का षडक्षर मंत्र सर्वश्रेष्ठ है। यह आठ प्रकार का तथा और भी अनेक प्रकार का है। इस मंत्र का महत्व शिव जी यथार्थ रूप से जानते हैं। ॥१-२॥ श्रीराममन्त्रराजस्य सम्यगर्थोऽयमुच्यते । नारायणाष्टाक्षरे च शिवपञ्चाक्षरे तथा । सार्थकार्णद्वयं रामो रमन्ते यत्र योगिनः । रकारो वह्निवचनः प्रकाशः पर्यवस्यति ॥ ३॥ श्री राम मंत्र राज का वास्तविक अर्थ कहता हूँ। नारायण के अष्टाक्षर मंत्र (ॐ नमो नारायणाय) तथा शिव के पंचाक्षर मंत्र (नमः शिवाय) में र और म दो अक्षर सार्थक हैं। राम वह हैं जिनमें योगी जन सद्य निमग्न रहते हैं। रमण करते हैं। र अग्निबीज है यह प्रकाश अर्थ को बताता है। ॥ ३॥ सच्चिदानन्दरूपोऽस्य परमात्मार्थ उच्यते । व्यञ्जनं निष्कलं ब्रह्म प्राणो मायेति च स्वरः ॥ ४॥ सत्य, चेतन, आनंद, सच्चिदानंद परमात्मा इस र का अर्थ है। र व्यंजन है। निरंजन ब्रह्म है। 'आ' यह स्वर ही प्राणतत्व माया है। ॥ ४ ॥ व्यज्ञ्जनैः स्वरसंयोगं विद्धि तत्प्राणयोजनम् । रेफो ज्योतिर्मये तस्मात्कृतमाकरयोजनम् ॥ ५॥ व्यंजन (र) में स्वर (आ) का संयोग होना ही प्राण तत्व है। ज्योतिर्मय 'र' या 'रेफ' में 'आ' का संयोजन इसी से हुआ है। ॥ ५ ॥ मकारोऽभ्युदयार्थत्वात्स मायेति च कीर्त्यते । सोऽयं बीजं स्वकं यस्मात्समायं ब्रह्म चोच्यते ॥ ६॥ म का अर्थ है उन्नति। इसी से 'म' को माया कहा गया है। रां यह बीज राम मंत्र है। 'रां' से बिन्दु माया सहित पुरुष बढ़म का अर्थ लिया गया है। ॥६॥ सबिन्दुः सोऽपि पुरुषः शिवसूर्येन्दुरूपवान् । ज्योतिस्तस्य शिखा रूपं नादः सप्रकृतिर्मतः ॥ ७॥ यह पुरुष शिव सूर्य चंद्र रूप वाला है। 'रा' तो ज्योति कि ज्वाला है बिन्दु नाद तत्व है यह प्रकृति (माया) है। ॥ ७॥ प्रकृतिः पुरुषश्चोभौ समायाद्ब्रह्मणः स्मृतौ । बिन्दुनादात्मकं बीजं वह्निसोमकलात्मकम् ॥ ८॥ 'आम' से परीकृत तथा पुरुष दोनों ग्रहण किए जाते हैं। इस प्रकार बिन्दु और नपद से युक्त बीज 'रां' है। यह अग्नि और चंद्र की कला रूप है। ॥८॥ अग्नीषोमात्मकं रूपं रामबीजे प्रतिष्ठितम् । यथैव वटबीजस्थः प्राकृतश्च महाद्रुमः ॥ ९॥ अग्नि और सोम का सम्मिलित रूप 'रां' इस मंत्र बीज में प्रतिष्ठित उसी प्रकार से है जैसे वट के बीज में ही महान वटवृक्ष प्रतिष्ठित है। ॥ ९॥ तथैव रामबीजस्थं जगदेतच्चराचरम् । बीजोक्तमुभयार्थत्वं रामनामनि दृश्यते ॥ १०॥ 'रां' बीज में ही चर और अचर जगत स्थित है। बीच में तो सगुण निर्गुण या अग्नि और चंद्र तत्व है, वही 'राम' इस नाम में भी है। ॥१०॥ बीजं मायाविनिर्मुक्तं परं ब्रह्मेति कीर्त्यते । मुक्तिदं साधकानां च मकारो मुक्तिदो मतः ॥ ११॥ रां' अक्षर माया रहित परब्रह्म को बताता है, म अक्षर मुक्ति अर्थ वाचक है। मकार सादक को मुक्ति प्रदाता है ॥ ११॥ मारूपत्वादतो रामो भुक्तिमुक्तिफलप्रदः । आद्यो र तत्पदार्थः स्यान्मकरस्त्वंपदार्थवान् ॥ १२॥ मा (लक्ष्मी) रूप ही 'म' है, अतः यह मुक्ति दाता है। इस प्रकार जो भोग और मोक्षदाता है वही परमात्मा राम है। ॥ १२ ॥ तयोः संयोजनमसीत्यर्थे तत्त्वविदो विदुः । नमस्त्वमर्थो विज्ञेयो रामस्तत्पदमुच्यते ॥ १३॥ असीत्यर्थे चतुर्थी स्यादेवं मन्त्रेषु योजयेत् । तत्त्वमस्यादिवाक्यं तु केवलं मुक्तिदं यतः ॥ १४॥ राम का पहला अक्षर 'रा' है तत पद का अर्थ परमात्मा है और 'म' अक्षर ही 'त्वं' पद का अर्थ (जीव) है। दोनों तत-त्वं पदों का मेल असि (हो) इस क्रिया पद से है। इसी प्रकार षडाक्षर मंत्र का 'नमः' शब्द त्वम (जीव) अर्थ को कहता है। 'राम' शब्द तत (परब्रह्म) अर्थ को बताता है। राम के आगे वाली चतुर्थी विभक्ति (आए) है। 'असि' (हौ) अर्थ का बताती है। 'तत्वमसि' यह वेदवाक्य मुक्तिदायक है। उसी प्रकार यह षडाक्षर मंत्र 'रां रामाय नमः' भी तत्वमसि का अर्थ है और मुक्तिदायक है। ॥१३-१४॥ भुक्तिमुक्तिप्रदं चैतत्तस्मादप्यतिरिच्यते । मनुष्वेतेषु सर्वेषामधिकारोऽस्ति देहिनाम् ॥ १५॥ भोग और मोक्ष देने वाला यह मंत्र 'तत्व मसि' इस महावाक्य से भी अधिक महत्व का है, इसमें सारे मनुष्यों का अधिकार हैं (सर्वेप्रपत्तेरधिकारिणी मंत्रः) । ॥ १५॥ मुमुक्षूणां विरक्तानां तथा चाश्रमवासिनाम् । प्रणवत्वात्सदा ध्येयो यतीनां च विशेषतः । राममन्त्रार्थविज्ञानी जीवन्मुक्तो न संशयः ॥ १६॥ प्रणव (ॐ) रूप ही यह षडाक्षर मंत्र है। अतः मोक्ष की इच्छा वाले विरक्त महात्मा तथा किसी भी आश्रम के जनों के लिए विशेष रूप से सन्यासी के लिए सदा ध्यान और जप के योग्य है। राम मंत्रों का पुनश्चरण करने वाला श्री राम चंद्र प्रभु द्वारा सायुज्य मोक्ष को प्रपात करता है। ॥ १६॥ य इमामुपनिषदमधीते सोऽग्निपूतो भवति । स वायुपूतो भवति । सुरापानात्पूतो भवति । स्वर्णस्तेयात्पूतो भवति । ब्रह्महत्यापूतो भवति । स राममन्त्राणां कृतपुरश्चरणो रामचन्द्रो भवति । तदेतदृचाभ्युक्तम् । सदा रामोऽहमस्मीति तत्त्वतः प्रवदन्ति ये । न ते संसारिणो नूनं राम एव न संशयः ॥ ॐ सत्यमित्युपनिषत् ॥ जो इस (आथर्वण) उपनिषद का अध्यानन करता है वह अग्नि तथा वायु से होने वाली पवित्रता धारण करता है। सुरापान, स्वर्ण की चोरी, ब्रह्म हत्या और महापापों से भी रहित होकर पवित्र हो जाता है। जैसा कि इस ऋचा में कहा है, सदा मैं राम परब्रह्म हूँ, यह जो तत्व ज्ञान करके कहते है, वह कभी संसार में नहीं लौटते हैं। वह राम रूप ही हैं। इसमे संशय नहीं है। ॐ सत्यम (राम जी परब्रह्म है, यह सत्य है)। यह उपनिषद पूर्ण हुआ। ॥१७॥ ॥ हरिः ॐ ॥ ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा सस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥ गुरु के यहाँ अध्ययन करने वाले शिष्य अपने गुरु, सहपाठी तथा मानवमात्र का कल्याण-चिन्तन करते हुए देवताओं से प्रार्थना करते है किः हे देवगण ! हम भगवान का आराधन करते हुए कानों से कल्याणमय वचन सुनें। नेत्रों से कल्याण ही देखें। सुदृढः अंगों एवं शरीर से भगवान की स्तुति करते हुए हमलोग; जो आयु आराध्य देव परमात्मा के काम आ सके, उसका उपभोग करें। स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्थ्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ जिनका सुयश सभी ओर फैला हुआ है, वह इन्द्रदेव हमारे लिए कल्याण की पुष्टि करें, सम्पूर्ण विश्व का ज्ञान रखने वाले पूषा हमारे लिए कल्याण की पुष्टि करें, हमारे जीवन से अरिष्टों को मिटाने के लिए चक्र सदृश्य, शक्तिशाली गरुड़देव हमारे लिए कल्याण की पुष्टि करें तथा बुद्धि के स्वामी बृहस्पति भी हमारे लिए कल्याण की पुष्टि करें। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हमारे, अधिभौतिक, अधिदैविक तथा तथा आध्यात्मिक तापों (दुखों) की शांति हो। ॐ तत् सत् ॥ ॥ इति श्रीरामरहस्योपनिषत्समाप्ता ॥ ॥ श्री रामरहस्योपनिषद पूर्ण हुआ ॥

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