Shree Rampurvatapiniyopnishd Chapter 3 (श्री रामपूर्वतापिनीयोपनिषद् तृतीय सर्ग)

॥ श्री हरि ॥ ॥ श्रीरामरहस्योपनिषत् ॥ ॥ तृतीय सर्ग ॥ श्रीराम में पूरी सृष्टि का समाहित होना सीतारामौ तन्मयावत्र पूज्यौ जातान्याभ्यां भुवनानि द्विसप्त । स्थितानि च प्रहितान्येव तेषु ततो रामो मानवो माययाधात् ॥ १॥ इस बीज मन्त्र में पुरूष-प्रकृति रूप में राम एवं सीता (यानि की सीताराम) स्थित हैं। उन्हीं से यह १४. भुवन प्रकाशित (पैदा) हुए हैं। इन दोनों में सृष्टि स्थित है तथा पैदा और लय भी हो जाती है। अतः राम ने माया के माध्यम से इस सृष्टि को भी रचा एवं मनुष्य रूप भी धारण किया। ॥१॥ १४ भुवनों के नामः ७ ऊर्ध्व लोक-- (१) भूः, (२) भुवः, (३) स्वः, (४) महः, (५) जनः, (६) तपः, (७) सत्यम एवं ७ अधः लोक (८) अतल, (९) वितल, (१०) सुतल, (११) रसातल, (१२) तलातल, (१३) महातल, (१४) पाताल।] जगत्प्राणायात्मनेऽस्मै नमः स्या न्नमस्त्वैक्यं प्रवदेत्प्राग्गुणेनेति ॥ २॥ इस सृष्टि को रचकर वे उसमें प्राण रूप में प्रविष्ट कर गये। ऐसे श्रीराम को बारम्बार नमस्कार है, प्रणाम है। पूरी सृष्टि उनका शरीर है। यह समझा जाय एवं इस ज्ञान से सम्पन्न होकर यह समझा जाय कि 'मेरे और परमब्रह्म राम में कोई भेद नहीं है, हम एक ही हैं'। ॥२ ॥ इति रामपूर्वतापिनीयोपनिषद् तृतीय सर्ग ॥ ॥३॥ श्रीरामपूर्वतापिनीयोपनिषद् का तृतीय सर्ग समाप्त हुआ।

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