ऋग्वेद द्वितीय मंडल सूक्त ९

ऋग्वेद - द्वितीय मंडल सूक्त ९ ऋषिः- गृत्समद (अंगीरसः शौन होत्रः पश्चयाद) भार्गवः शौनकः। देवता - अग्निः । छंद - त्रिष्टुप, नि होता होतृषदने विदानस्त्वेषो दीदिवाँ असदत्सुदक्षः । अदब्धव्रतप्रमतिर्वसिष्ठः सहस्रम्भरः शुचिजिह्वो अग्निः ॥१॥ ये अग्निदेव होता, मेधावी, प्रदीप्त, पोषक, बलशाली, तेजस्वी, उत्तम बल से युक्त, नियमों पर आरूढ़, आश्रय दाता, हजारों का भरण- पोषण करने में समर्थ तथा सत्यवक्ता हैं। ऐसे अग्निदेव होता के सदन में प्रतिष्ठित हों ॥१॥ त्वं दूतस्त्वमु नः परस्पास्त्वं वस्य आ वृषभ प्रणेता । अग्ने तोकस्य नस्तने तनूनामप्रयुच्छन्दीद्यद्बोधि गोपाः ॥२॥ हे बलशाली अग्निदेव ! आप ही हमारे दूत तथा आप ही हमारे रक्षक हैं। आप धन प्रदाता हैं, अतः हमारी सन्तति को प्रमाद रहित तथा दीप्तिवान् बनाकर हमारे कुल का विस्तार करें तथा भली-भाँति प्रज्वलित होकर हमारे शरीर की रक्षा करें ॥२॥ विधेम ते परमे जन्मन्नग्ने विधेम स्तोमैरवरे सधस्थे । यस्माद्योनेरुदारिथा यजे तं प्र त्वे हवींषि जुहुरे समिद्धे ॥३॥ हे अग्निदेव ! आपके उत्पत्तिस्थान द्युलोक में हम स्तुतियों द्वारा आपका पूजन करें, द्युलोक से नीचे अन्तरिक्ष में भी स्तुति युक्त वचनों से आपका पूजन करें और जहाँ आप प्रकट हुए हैं, उस पृथ्वी लोक में यज्ञ में प्रज्वलित होने पर हविष्यान्न समर्पित करके हम आप का पूजन करें ॥३॥ अग्ने यजस्व हविषा यजीयाञ्छ्रुष्टी देष्णमभि गृणीहि राधः । त्वं ह्यसि रयिपती रयीणां त्वं शुक्रस्य वचसो मनोता ॥४॥ हे अग्निदेव ! आप श्रेष्ठ याज्ञिक हैं, अतः स्वीकार करने योग्य हमारे उपयुक्त पदार्थ एवं धन हमें शीघ्र प्रदान करें। आप हमारी स्तुतियों पर ध्यान दें। आप धनाधिपति हैं ॥४॥ उभयं ते न क्षीयते वसव्यं दिवेदिवे जायमानस्य दस्म । कृधि क्षुमन्तं जरितारमग्ने कृधि पतिं स्वपत्यस्य रायः ॥५॥ हे दुःखनाशक अग्निदेव! आपके द्वारा प्रदत्त (दिव्य तथा पार्थिव) दोनों प्रकार का धन कभी भी नष्ट नहीं होता, अतः आप स्तोताओं को यशस्वी बनायें और उत्तम सन्तति युक्त धन प्रदान करें ॥५॥ सैनानीकेन सुविदत्रो अस्मे यष्टा देवाँ आयजिष्ठः स्वस्ति । अदब्धो गोपा उत नः परस्पा अग्ने द्युमदुत रेवद्दिदीहि ॥६॥ हे अग्निदेव ! आप अपनी तेजस्वी ज्वालाओं के द्वारा हमें उत्तम ऐश्वर्य से युक्त करें। आप किसी से भी तिरस्कृत न होने वाले, उत्तम याज्ञिक देवताओं के पोषक तथा संकटों से पार करने वाले श्रेष्ठ रक्षक हैं। आप तेजस्वी, ऐश्वर्यवान् तथा कल्याणकारी रूप में सर्वत्र प्रकाशित हों॥६॥

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