ऋग्वेद पंचम मण्डलं सूक्त ५६

ऋग्वेद-पंचम मंडल सूक्त ५६ ऋषिः श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः । छंद - वृहती, ३,७ सतोवृहती अग्ने शर्धन्तमा गणं पिष्टं रुक्मेभिरज्ज्ञ्जिभिः । विशो अद्य मरुतामव ह्वये दिवश्चिद्रोचनादधि ॥१॥ हे अग्ने ! आज आप दीप्तिमान् अलंकारों से विभूषित, शत्रु संहारक वीर मरुद्गणों और उनकी प्रजाओं को आहूत करें। हम देदीप्यमान द्युलोक से उनका आवाहन करते हैं ॥१॥ यथा चिन्मन्यसे हृदा तदिन्मे जग्मुराशसः । ये ते नेदिष्ठं हवनान्यागमन्तान्वर्ध भीमसंदृशः ॥२॥ हे अग्ने ! जिस प्रकार आप मरुद्गणों को हृदय से पूज्य मानते हैं, उसी प्रकार के हमारे सम्मानित भावों से वे हमारे निकट आगमन करें । ये जब हमारे हवनों के निकट आगमन करें, तब उन विकराल स्वरूप वाले मरुतों को आप हव्य द्वारा प्रवृद्ध करें ॥२॥ मीळ्हुष्मतीव पृथिवी पराहता मदन्त्येत्यस्मदा । ऋक्षो न वो मरुतः शिमीवाँ अमो दुधो गौरिव भीमयुः ॥३॥ पृथ्वी पर प्रभावित होकर व्यक्ति समर्थों के पास जाते हैं, उसी प्रकार हर्षित मरुतों की सेना हमारे निकट आ रही है। हे मरुतो! आप वृषभ के सदृश सेचन में समर्थ (उत्पादन में समर्थ) और विशिष्ट सामर्थ्यवान् हैं ॥३॥ नि ये रिणन्त्योजसा वृथा गावो न दुर्धरः । अश्मानं चित्स्वर्यं पर्वतं गिरिं प्र च्यावयन्ति यामभिः ॥४॥ दुर्धर्ष बैल के समान ये मरुद्गण अपने बल से सुगमतापूर्वक शत्रुओं का विनाश करते हैं। गर्जना करते हुए गमनशील ये मरुद्गण अपने आघात से मेघों को खण्ड-खण्ड कर वृष्टि करते हैं ॥४॥ उत्तिष्ठ नूनमेषां स्तोमैः समुक्षितानाम् । मरुतां पुरुतममपूर्वं गवां सर्गमिव ह्वये ॥५॥ हे मरुतो ! आप उठें। स्तोत्रों से निश्चय ही समृद्ध हुए आप मरुद्गणों के सर्वश्रेष्ठ और अपूर्व बलों की हम वन्दना करते हैं ॥५॥ युङ्ग्द्ध्वं ह्यरुषी रथे यु‌ङ्ग्द्ध्वं रथेषु रोहितः । युङ्ग्ध्वं हरी अजिरा धुरि वोळ्हवे वहिष्ठा धुरि वोळ्हवे ॥६॥ हे मरुतो ! आप अपने रथ में अरुणिम मृगों को योजित करें अथवा रोहित वर्ण मृग को योजित करें अथवा वेगवान्, वहन कार्य में समर्थ अश्वों को भ्रमणशील धुरी को खींचने के लिए योजित करें ॥६॥ उत स्य वाज्यरुषस्तुविष्वणिरिह स्म धायि दर्शतः । मा वो यामेषु मरुतश्चिरं करत्प्र तं रथेषु चोदत ॥७॥ हे मरुतो ! उन अरुणिम आभा से युक्त, बड़े शब्दकारी, दर्शनीय अश्वों को रथ से योजित कर इस प्रकार प्रेरित करें कि वे आपकी यात्राओं में विलम्ब न करें ॥७॥ रथं नु मारुतं वयं श्रवस्युमा हुवामहे । आ यस्मिन्तस्थौ सुरणानि बिभ्रती सचा मरुत्सु रोदसी ॥८॥ हम मरुतों के अन्नों से अभिपूरित, उस रथ का आह्वान करते हैं, जिसमें उत्तम रमणीय द्रव्यों की धारणकर्जी मरुतों की माता अधिष्ठित हैं ॥८॥ तं वः शर्धं रथेशुभं त्वेषं पनस्युमा हुवे । यस्मिन्त्सुजाता सुभगा महीयते सचा मरुत्सु मीळ्ळ्हुषी ॥९॥ हम मरुतों के रथ में शोभायमान, उस तेजस्वी और स्तुत्य संघ शक्ति का आह्वान करते हैं, जिसमें सुजाता और सौभाग्यवती कल्याणकारिणी देवी मरुद्गणों के साथ महत्ता को प्राप्त होती हैं ॥९॥

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