ऋग्वेद द्वितीय मंडल सूक्त ४०

ऋग्वेद - द्वितीय मंडल सूक्त ४० ऋषिः- गृत्समद (अंगीरसः शौन होत्रः पश्चयाद) भार्गवः शौनकः। देवता- सोमापूषणौ, ६ अदितिः सविता । छंद- त्रिष्टुप सोमापूषणा जनना रयीणां जनना दिवो जनना पृथिव्याः । जातौ विश्वस्य भुवनस्य गोपौ देवा अकृण्वन्नमृतस्य नाभिम् ॥१॥ हे सोमदेव तथा पूषादेव ! आप दोनों द्युलोक तथा पृथ्वीलोक के ऐश्वर्य उत्पादक हैं। जन्म लेते ही आप दोनों समस्त संसार के संरक्षक हुए हैं। देवों ने आपको अमृत का केन्द्र बनाया है ॥१॥ इमौ देवौ जायमानौ जुषन्तेमौ तमांसि गूहतामजुष्टा । आभ्यामिन्द्रः पक्वमामास्वन्तः सोमापूषभ्यां जनदुस्रियासु ॥२॥ सोमदेव तथा पूषादेव के जन्म लेते ही सभी देवगण इन दोनों की सेवा करने लगे। ये दोनों देव अप्रिय अन्धकार को नष्ट करते हैं। इन्द्रदेव ने इन सोम तथा पूषादेवों की मदद से तरुणी धेनुओं में पक्व दुग्ध उत्पन्न किया ॥२॥ सोमापूषणा रजसो विमानं सप्तचक्रं रथमविश्वमिन्वम् । विषूवृतं मनसा युज्यमानं तं जिन्वथो वृषणा पञ्चरश्मिम् ॥३॥ है सोम तथा पूषादेवो ! आप समस्त लोकों के उत्पन्न करने वाले, सर्वव्यापी, समस्त संसार के रक्षक, सात ऋतु रूप (मलमास सहित) चक्रों से युक्त, इच्छा से संचालित होने वाले, पाँच लगामों वाले रथ को हमारी ओर प्रेरित करें ॥३॥ दिव्यन्यः सदनं चक्र उच्चा पृथिव्यामन्यो अध्यन्तरिक्षे । तावस्मभ्यं पुरुवारं पुरुक्षु रायस्पोषं वि ष्यतां नाभिमस्मे ॥४॥ आप में से एक ऊँचे द्युलोक में रहते हैं तथा दूसरे अन्तरिक्ष और पृथिवी में रहते हैं। वे दोनों देव हमारे लिए स्वीकार करने योग्य, बहुत प्रकार के, अन्नादि से पूर्ण, पुष्टिकारक ऐश्वर्य प्रदान करें तथा पशु धन भी दें ॥४॥ विश्वान्यन्यो भुवना जजान विश्वमन्यो अभिचक्षाण एति । सोमापूषणाववतं धियं मे युवाभ्यां विश्वाः पृतना जयेम ॥५॥ हे सोम तथा पूषा देवो! आप में से एक ने समस्त संसार को उत्पन्न किया है तथा दूसरे देव सम्पूर्ण संसार का पर्यवेक्षण करते हुए जाते हैं। हे सोम तथा पूषा देवो! आप हमें सद्बुद्धि प्रदान करते हुए हमारे कर्मों की रक्षा करें। आपकी मदद से हम शत्रु सेना पर विजय प्राप्त करें ॥५॥ धियं पूषा जिन्वतु विश्वमिन्वो रयिं सोमो रयिपतिर्दधातु । अवतु देव्यदितिरनर्वा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः ॥६॥ समस्त विश्व को तृप्त करने वाले पूषादेव हमारी बुद्धियों को सन्मार्गगामी बनायें । ऐश्वर्यपति सोमदेव हमें धन प्रदान करें । अनुकूल व्यवहार करने वाली (देवों की माता) अदिति हमारी रक्षा करें । हम सुसन्तति युक्त होकर यज्ञ में आपका यशोगान करें ॥६॥

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