ऋग्वेद पंचम मण्डलं सूक्त ७१

ऋग्वेद-पंचम मंडल सूक्त ७१ ऋषिः बाहुवृक्त आत्रेयः देवता - मित्रावरुणौ । छंद - गायत्री आ नो गन्तं रिशादसा वरुण मित्र बर्हणा । उपेमं चारुमध्वरम् ॥१॥ हे मित्र और वरुणदेवो! आप दोनों शत्रु-हिंसक और शत्रु-नाशक हैं। आप दोनों हमारे अत्यन्त निर्मल यज्ञ में पधारने की कृपा करें ॥१॥ विश्वस्य हि प्रचेतसा वरुण मित्र राजथः । ईशाना पिप्यतं धियः ॥२॥ हे प्रकृष्ट ज्ञानसम्पन्न मित्र और वरुणदेवो ! आप सम्पूर्ण विश्व के प्रशासक हैं और सब पर प्रभुत्व रखने वाले हैं। आप हमारी अभिलषित बुद्धि को तृप्त करें ॥२॥ उप नः सुतमा गतं वरुण मित्र दाशुषः । अस्य सोमस्य पीतये ॥३॥ हे मित्र और वरुणदेवो! हम अभिषुत-सोम युक्त हव्यादि देने वाले हैं। आप हमारे द्वारा अभिषुत सोम का पान करने के लिए हमारे पास आगमन करें ॥३॥

Recommendations