ऋग्वेद तृतीय मण्डलं सूक्त ४२

ऋग्वेद - तृतीय मंडल सूक्त ४२ ऋषि - गाथिनो विश्वामित्रः । देवता - इन्द्रः । छंद - गायत्री उप नः सुतमा गहि सोममिन्द्र गवाशिरम् । हरिभ्यां यस्ते अस्मयुः ॥१॥ हे इन्द्रदेव ! याजकों की अभिलाषा करते हुए आप अलों से योजित अपने रथ द्वारा हमारे पास आयें। हमारे द्वारा अभिद्युत गोदुग्धादि मिश्रित सोम का पान करे ॥१॥ तमिन्द्र मदमा गहि बर्हिःष्ठां ग्रावभिः सुतम् । कुविन्वस्य तृप्णवः ॥२॥ हे इन्द्रदेव ! आप पाषाणों से निष्पन्न कुश के आसन पर सुसज्जित तथा हर्प प्रदायक सोम के निकट आयें। प्रचुर मात्रा में इसका पान करके तृप्त हों ॥२॥ इन्द्रमित्था गिरो ममाच्छागुरिषिता इतः । आवृते सोमपीतये ॥३॥ इन्द्रदेव को बुलाने के लिए भेजी गई स्तुतियाँ, उनको सोमपान के लिए इस यज्ञम्थल पर भली-भाँति लायें ॥३॥ इन्द्रं सोमस्य पीतये स्तोमैरिह हवामहे । उक्थेभिः कुविदागमत् ॥४॥ हम इन्द्रदेव को सोमपान के लिए यहाँ इस यज्ञ में स्तुति गान करते हुए बुलाते हैं। स्तोत्रों द्वारा वे अनेक बार विभिन्न यज्ञों में आ चुके हैं॥४॥ इन्द्र सोमाः सुता इमे तान्दधिष्व शतक्रतो । जठरे वाजिनीवसो ॥५॥ हे शतकर्मा इन्द्रदेव ! आपके निमित्त सोम प्रस्तुत हैं। इसे उदर में धारण करें। आप अन्न-धन के अधीश्वर हैं॥५॥ विद्मा हि त्वा धनंजयं वाजेषु दधृषं कवे । अधा ते सुम्नमीमहे ॥६॥ हे क्रान्तदश इन्द्रदेव ! हम आपको शत्रुओं के पराभवकर्ता और धनों के विजेता के रूप में जानते हैं, अतएव हम आपसे धन की याचना करते हैं॥६॥ इममिन्द्र गवाशिरं यवाशिरं च नः पिब । आगत्या वृषभिः सुतम् ॥७॥ हे इन्द्रदेव ! आप अपने बलवान् अश्वों द्वारा आकर हमारे द्वारा अभिषुत गो-दुध तथा जो मिश्रित समरस का पान करें ॥७॥ तुभ्येदिन्द्र स्व ओक्ये सोमं चोदामि पीतये । एष रारन्तु ते हृदि ॥८॥ हे इन्द्रदेव ! हम यज्ञ स्थल पर आपके निमित्त सोमरस प्रस्तुत करते हैं यह सौम आपके हृदय में रमण करें ॥८ ॥ त्वां सुतस्य पीतये प्रत्नमिन्द्र हवामहे । कुशिकासो अवस्यवः ॥९॥ हे पुरातन इन्द्रदेव ! हम कुशिक वंशज आपकी संरक्षणका सामथ्र्यों की अभिलाषा करते हैं। सोमपान के लिए यज्ञस्थल पर हम आपका आवाहन करते हैं ॥९॥

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