ऋग्वेद द्वितीय मंडल सूक्त ४२

ऋग्वेद - द्वितीय मंडल सूक्त ४२ ऋषिः- गृत्समद (अंगीरसः शौन होत्रः पश्चयाद) भार्गवः शौनकः । देवता- शकुन्तः । छंद- त्रिष्टुप कनिक्रदज्जनुषं प्रब्रुवाण इयर्ति वाचमरितेव नावम् । सुमङ्गलश्च शकुने भवासि मा त्वा का चिदभिभा विव्या विदत् ॥१॥ जिस प्रकार मल्लाह नाख़ को चलाता है, उसी प्रकार उपदेश देने वाला शकुनि बार-बार उत्तम वाणी द्वारा प्रेरित करता है। हे शकुनि ! आप सबके कल्याण करने वाले हों। आपको कोई आक्रमणकारी शत्रु किसी भी प्रकार का कष्ट न दे ॥१॥ मा त्वा श्येन उद्वधीन्मा सुपर्णो मा त्वा विददिषुमान्वीरो अस्ता । पित्र्यामनु प्रदिशं कनिक्रदत्सुमङ्गलो भद्रवादी वदेह ॥२॥ हे शकुनि (उपदेशक) ! आपको श्येन (दुष्ट व्यक्ति) न मारे और न ही गरुड़ पक्षी (बलशाली) तुम्हें मारे। कोई शस्त्रास्त्रधारी आपको न प्राप्त कर सके । दक्षिण दिशा (विपरीत परिस्थितियों में भी कल्याणकारी वचनों का ही यहाँ उच्चारण करें ॥२॥ अव क्रन्द दक्षिणतो गृहाणां सुमङ्गलो भद्रवादी शकुन्ते । मा नः स्तेन ईशत माघशंसो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः ॥३॥ हे शकुनि ! आप मंगलमय शब्दों को बोलने वाले हैं; अतः घर की दक्षिण दिशा में बैठकर भी कल्याणकारी प्रिय वचन बोलें। चोर तथा दुष्ट व्यक्ति हमारे ऊपर अधिकार न करें। सुसंतति युक्त होकर हम इस यज्ञ में आप को यशोगान करें ॥३॥

Recommendations