ऋग्वेद द्वितीय मंडल सूक्त २१

ऋग्वेद - द्वितीय मंडल सूक्त २१ ऋषिः- गृत्समद (अंगीरसः शौनहोत्रः पश्चयाद) भार्गवः शौनकः। देवता- इन्द्रः । छंद जगती, ५- त्रिष्टुप विश्वजिते धनजिते स्वर्जिते सत्राजिते नृजित उर्वराजिते । अश्वजिते गोजिते अब्जिते भरेन्द्राय सोमं यजताय हर्यतम् ॥१॥ हे याजको ! समस्त विश्व को जीतने वाले, धन की विजय करने वाले, संगठित रूप में विजय प्राप्त करने वाले, मनुष्यों को जीतने वाले, उर्वर भूमि को जीतने वाले, घोड़े तथा गौओं को जीतने वाले तथा जल तत्त्व को अपने वश में करने वाले पूज्य इन्द्रदेव के निमित्त तेजस्वी सोम प्रदान करो ॥१॥ अभिभुवेऽभिभङ्गाय वन्वतेऽषाव्हाय सहमानाय वेधसे । तुविग्रये वह्नये दुष्टरीतवे सत्रासाहे नम इन्द्राय वोचत ॥२॥ हे याजको ! सर्वव्यापक, प्रलयंकारी, ऐश्वर्य का यथोचित विभाजन करने वाले, अजेय शत्रुओं के आक्रमण को स्वयं झेलने वाले, विश्व के विधाता, पुष्टमीव, सम्पूर्ण जगत् को धारण करने वाले, अपार सामर्थ्य वाले तथा संगठित रूप से युद्ध करने वाले इन्द्रदेव का सदैव यशोगान करो ॥२॥ सत्रासाहो जनभक्षो जनंसहश्च्यवनो युध्मो अनु जोषमुक्षितः । ा वृतंचयः सहुरिर्विक्ष्वारित इन्द्रस्य वोचं प्र कृतानि वीर्या ॥३॥ हे याजको ! मनुष्यों के हित के लिए संगठित रूप से लड़ने वाले, बलवानों के विजेता, शत्रु निवारक योद्धा, प्रीतिपूर्वक सोमरस का पान करने वाले, शत्रुहन्ता तथा प्रजा पालक तेजस्वी इन्द्रदेव द्वारा किये गये महान् पराक्रमों का यशोगान करो ॥३॥ अनानुदो वृषभो दोधतो वधो गम्भीर ऋष्वो असमष्टकाव्यः । रध्रचोदः श्रथनो वीळितस्पृथुरिन्द्रः सुयज्ञ उषसः स्वर्जनत् ॥४॥ हे याजको ! महादानी, बलशाली, दुर्धर्ष शत्रुओं के हन्ता, गम्भीर, सर्वज्ञाता, असाधाण कार्य कुशल, उत्तम कर्मों के प्रेरक, शत्रुओं की शक्ति को क्षीण करने वाले, परिपुष्ट अंगों वाले, श्रेष्ठकर्मा, महान् इन्द्रदेव ने अपनी सामर्थ्य से उषाओं तथा सूर्य को प्रकट किया है ॥४॥ यज्ञेन गातुमप्तुरो विविद्रिरे धियो हिन्वाना उशिजो मनीषिणः । अभिस्वरा निषदा गा अवस्यव इन्द्रे हिन्वाना द्रविणान्याशत ॥५॥ शीघ्रता से कार्य करने वाले ज्ञानीजन, समृद्धि की कामना से श्रेष्ठ यज्ञीय कर्मों में स्तुतियाँ करते हुए योग्य मार्ग पा जाते हैं, और अपने संरक्षण की कामना से इन्द्रदेव की स्तुतियाँ करते हुए उनके समीप रहकर धन प्राप्त करते हैं॥५॥ इन्द्र श्रेष्ठानि द्रविणानि धेहि चित्तिं दक्षस्य सुभगत्वमस्मे । पोषं रयीणामरिष्टिं तनूनां स्वाद्मानं वाचः सुदिनत्वमह्नाम् ॥६॥ हे इन्द्रदेव ! हमें श्रेष्ठ धन प्रदान करें। हमें चेतना युक्त सामर्थ्य तथा उत्तम ऐश्वर्य प्रदान करें। हमें निरोग बनाते हुए ऐश्वर्य की वृद्धि करें । हमारी वाणी को मधुर तथा प्रत्येक दिन को उत्तम बनायें ॥६॥

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