ऋग्वेद तृतीय मण्डलं सूक्त १३

ऋग्वेद - तृतीय मंडल सूक्त १३ ऋषि - ऋषभो विश्वामित्रः । देवता - अग्निः । छंद - अनुष्टुप प्र वो देवायाग्नये बर्हिष्ठमर्चास्मै । गमद्देवेभिरा स नो यजिष्ठो बर्हिरा सदत् ॥१॥ हे स्तोताओ ! आप इन अग्निदेव के निमित्त उत्तम स्तुति करें, जिससे वे देवों के साथ हमारे पास आये और यजनीय वे अग्निदेव हमारे इस यज्ञ में कुशों पर विराजें ॥१॥ ऋतावा यस्य रोदसी दक्षं सचन्त ऊतयः । हविष्मन्तस्तमीळते तं सनिष्यन्तोऽवसे ॥२॥ द्यावा-पृथिवी जिन अग्निदेव के वशीभूत हैं। रक्षक देवगण भी जिन अग्निदेव के बल से पोषित होते हैं, धनाभिलाषी, सत्यवान्, हविदाता यजमान अपने संरक्षण के लिए उन अग्निदेव की स्तुति करते हैं॥२॥ स यन्ता विप्र एषां स यज्ञानामथा हि षः । अग्निं तं वो दुवस्यत दाता यो वनिता मघम् ॥३॥ वे मेधावान् अग्निदेव यजमानों के नियन्ता हैं। वे यज्ञों के भी नियन्ता हैं। ऐश्वर्यदाता वे अग्निदेव धन देने वाले हैं। अतएव हे ऋत्विजो आप उन अग्निदेव की परिचर्या करें ॥३॥ स नः शर्माणि वीतयेऽग्निर्यच्छतु शंतमा । यतो नः प्रुष्णवद्वसु दिवि क्षितिभ्यो अप्स्वा ॥४॥ वे अग्निदेव हमारे रक्षण के लिए उपयोग और शांतिदायी आवास प्रदान करें। जहाँ (रहकर) द्युलोक, अंतरिक्ष एवं पृथ्वी में संव्याप्त पुष्टिप्रद वैभव हमें प्राप्त हो ॥४॥ दीदिवांसमपूर्व्य वस्वीभिरस्य धीतिभिः । ऋक्वाणो अग्निमिन्धते होतारं विश्पतिं विशाम् ॥५॥ स्तोतागण उन देदीप्यमान, प्रतिक्षण नवीन, देवों का आवाहन करने वाले, प्रजापालक अग्निदेव को श्रेष्ठ स्तुतियों द्वारा प्रदीप्त करते हैं॥५॥ उत नो ब्रह्मन्नविष उक्थेषु देवहूतमः । शं नः शोचा मरुदृद्धोऽग्ने सहस्रसातमः ॥६॥ हे अग्निदेव ! स्तुतियों के समय आप हमारी रक्षा करें। हे देवों के आह्वाता ! आप मन्त्रोच्चारण में हमारी रक्षा करें। सहस्रों धनों के दाता आप, मरुद्गणों द्वारा वर्द्धित होते हैं। आप हमारे सुखों में वृद्धि करें ॥६॥ नू नो रास्व सहस्रवत्तोकवत्पुष्टिमद्वसु । द्युमदग्न्ने सुवीर्यं वर्षिष्ठमनुपक्षितम् ॥७॥ हे अग्ने ! आप हमें पुत्र-पौत्रादि सहित पुष्टिकारक, दीप्तिमान् तेजस्वी, उत्कृष्टतम, अक्षय तथा सहस्र संख्यक धन प्रदान करें ॥७॥

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