ऋग्वेद पंचम मण्डलं सूक्त ७९

ऋग्वेद-पंचम मंडल सूक्त ७९ ऋषिः सत्यश्रवा आत्रेयः देवता - उषा । छंद - पंक्ति महे नो अद्य बोधयोषो राये दिवित्मती । यथा चिन्नो अबोधयः सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते ॥१॥ हे सुप्रकाशित उषादेवि! पूर्व की भाँति हमें ज्ञान युक्त बनायें, ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए बोध दें। हे श्रेष्ठ कुल वाली, सत्य भाषिणी, वय्य के पुत्र सत्यश्रवा (सच्ची कीर्ति वाले) को अपनी कृपा का पात्र बनायें ॥१॥ या सुनीथे शौचद्रथे व्यौच्छो दुहितर्दिवः । सा व्युच्छ सहीयसि सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते ॥२॥ हे द्युलोक की पुत्री उषादेवि ! आप शुचद्रथ के पुत्र सुनीथ के लिए अन्धकार को दूर करके प्रकाशित (प्रकट) हुईं। ऐसी आप, वय्य के पुत्र सत्यश्रवा पर अनुग्रह (प्रकाश) वृष्टि करें ॥२॥ सा नो अद्याभरद्वसुर्युच्छा दुहितर्दिवः । यो व्यौच्छः सहीयसि सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते ॥३॥ हे आदित्य पुत्री उषादेवि ! आप हमें प्रचुर धन दें और आज हमारे अन्धकार को मिटायें। हे बलयुक्त, तमनाशक, प्रसिद्ध, सत्यरूपिणि उषादेवि ! वय्य के पुत्र सत्यश्रवा पर कृपा करें ॥३॥ अभि ये त्वा विभावरि स्तोमैर्गुणन्ति वह्नयः । मधैर्मघोनि सुश्रियो दामन्वन्तः सुरातयः सुजाते अश्वसूनृते ॥४॥ हे प्रकाशवती उषादेवि! ये (स्तोतागण) दीप्तिमान् उत्तम स्तोत्रों से आपकी स्तुति करते हैं। वे ऐश्वर्य द्वारा उत्तम शोभावान् और उत्तम दानशील हैं। हे धनवती, जन्म से शोभावती उषादेवि ! स्तोतागण अश्व प्राप्ति के लिए आपको उत्तम स्तुतियाँ निवेदित करते हैं ॥४॥ यच्चिद्धि ते गणा इमे छदयन्ति मघत्तये । परि चिद्वष्टयो दधुर्ददतो राधो अह्रयं सुजाते अश्वसूनृते ॥५॥ हे उषादेवि ! जो स्तोतागण धन प्राप्ति के लिए आपका स्तवन करते हैं, वे निश्चय ही ऐश्वर्य धारण करते हैं। और अक्षय व्यादि रूप धन देते रहते हैं। हे जन्म से शोभावती उषादेवि ! अश्वप्राप्ति के लिए स्तोताजन आपको उत्तम स्तुतियाँ निवेदित करते हैं ॥५॥ ऐषु धा वीरवद्यश उषो मघोनि सूरिषु । ये नो राधांस्यह्रया मघवानो अरासत सुजाते अश्वसूनृते ॥६॥ हे धनवती उषादेवि ! इन स्तोताओं को उत्तमवीर पुत्रों से युक्त अन्न प्रदान करें, जिससे वे धन-सम्पन्न होकर हमें विपुल धन दें। हे जन्म से शोभावती उषादेवि! अश्व प्राप्ति के लिए स्तोताजन आपको उत्तम स्तुतियाँ निवेदित करते है ॥६॥ तेभ्यो द्युम्नं बृहद्यश उषो मघोन्या वह । ये नो राधांस्यव्या गव्या भजन्त सूरयः सुजाते अश्वसूनृते ॥७॥ हे धनवती उषादेवि ! जो यजमान-स्तोता हमें गौओं, अश्वों से युक्त धन प्रदान करते हैं, उनके लिए आप तेजस्वी धन और प्रभूत अन्न प्रदान करें। हे जन्म से शोभावती उषादेवि ! अश्व प्राप्ति के लिए स्तोताजन आपको उत्तम स्तुतियाँ निवेदित करते हैं ॥७॥ उत नो गोमतीरिष आ वहा दुहितर्दिवः । साकं सूर्यस्य रश्मिभिः शुक्रैः शोचद्भिरर्चिभिः सुजाते अश्वसूनृते ॥८॥ हे सूर्य पुत्री उषादेवि ! सूर्य एवं अग्नि की शुभ, प्रदीप्त रश्मियों के साथ हमारी ओर आगमन करें। हमें गौओं से युक्त अन्न प्रदान करें। हे जन्म से शोभावती उषादेवि ! अश्व प्राप्ति के निमित्त स्तोताजन आपको उत्तम स्तुतियाँ निवेदित करते हैं ॥८॥ व्युच्छा दुहितर्दिवो मा चिरं तनुथा अपः । नेत्त्वा स्तेनं यथा रिपुं तपाति सूरो अर्चिषा सुजाते अश्वसूनृते ॥९॥ हे सूर्य पुत्री प्रकाशवती उषादेवि! हमारे कर्म के लिए विलम्ब न करें। जैसे राजा अपने शत्रु और चोर को सन्तप्त करते हैं, वैसे सूर्यदेव अपने तेज से आपको सन्तप्त न करें। हे जन्म से शोभावती उषादेवि! अश्व प्राप्ति के निमित्त स्तोताजन आपको उत्तम स्तुतियाँ निवेदित करते हैं ॥९॥ एतावद्वेदुषस्त्वं भूयो वा दातुमर्हसि । या स्तोतृभ्यो विभावर्युच्छन्ती न प्रमीयसे सुजाते अश्वसूनृते ॥१०॥ हे उषादेवि ! आप अभिलषित धन और अतिरिक्त धन भी प्रदान करने में समर्थ हैं। आप स्तोताओं का तम (अन्तर्तम) विनष्ट करने वाली हैं और उनका सन्ताप दूर करने वाली हैं। हे जन्म से शोभावती उषादेवि ! अश्व प्राप्ति के निमित्त स्तोताजन आपको उत्तम स्तुतियाँ निवेदित करते हैं ॥१०॥

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