ऋग्वेद पंचम मण्डलं सूक्त २४

ऋग्वेद-पंचम मंडल सूक्त २४ ऋषि - गौपायना लौपायना वा बंधुः सुबंधु, श्रुतबंधुर्वी प्रबंधुश्च देवता - अग्नि । छंद -द्विपदा विराट अग्ने त्वं नो अन्तम उत त्राता शिवो भवा वरूथ्यः ॥१॥ हे अग्निदेव ! आप हमारे अति निकट रहने वाले हों, हमारे श्रेष्ठ संरक्षक और मंगलकारी हों ॥१॥ वसुरग्निर्वसुश्रवा अच्छा नक्षि द्युमत्तमं रयिं दाः ॥२॥ सभी को आश्रय देने वाले, धनवानों में अग्रगण्य हे अग्निदेव ! आप हमारे पास सहजता से आएँ और तेजस्वितायुक्त होकर हमें धन प्रदान करें ॥२॥ स नो बोधि श्रुधी हवमुरुष्या णो अघायतः समस्मात् ॥३॥ हे अग्निदेव ! हम लोगों को आप जानें। हमारे आवाहन को सुनें और समस्त पापाचारियों से हमें रक्षित करें ॥३॥ तं त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः ॥४॥ हे तेजस्वी और प्रकाशवान् अग्निदेव ! मित्र आदि स्नेही परिजनों के लिए सुख की कामना करते हुए निश्चित ही हम आपकी प्रार्थना करते हैं ॥४॥

Recommendations