ऋग्वेद पंचम मण्डलं सूक्त २३

ऋग्वेद-पंचम मंडल सूक्त २३ ऋषि - द्युमनो प्रयस्वन्त विश्वचर्षणिरात्रेयः देवता - अग्नि । छंद -अनुष्टुप, ४ पंक्ति अग्ने सहन्तमा भर द्युम्नस्य प्रासहा रयिम् । विश्वा यश्चर्षणीरभ्यासा वाजेषु सासहत् ॥१॥ हे अग्निदेव ! 'द्युम्न' ऋषि के लिए शत्रुओं का ऐश्वर्य जीतकर लाने वाला एक वीर पुत्र प्रदान करें; जो स्तोत्रों से युक्त होकर युद्धों में सम्पूर्ण शत्रुओं को पराभूत कर सके ॥१॥ तमग्ने पृतनाषहं रयिं सहस्व आ भर । त्वं हि सत्यो अद्भुतो दाता वाजस्य गोमतः ॥२॥ हे बलशाली अग्निदेव ! आप सत्यस्वरूप, अद्भुत और गवादियुक्त अन्नों को देने वाले हैं। आप हमारे निमित्त शत्रुओं की सेना का ऐश्वर्य जीतकर हमें प्रदान करें ॥२॥ विश्वे हि त्वा सजोषसो जनासो वृक्तबर्हिषः । होतारं सद्मसु प्रियं व्यन्ति वार्या पुरु ॥३॥ हे अग्निदेव ! आप देवों का आह्वान करने वाले 'होता' रूप और सबके हितकारी हैं। ये सम्यक् प्रीति रखने वाले और यज्ञार्थ कुश लाने वाले ऋत्विग्गण आपसे वरणीय धनों की याचना करते हैं ॥३॥ स हि ष्मा विश्वचर्षणिरभिमाति सहो दधे । अग्न एषु क्षयेष्वा रेवन्नः शुक्र दीदिहि द्युमत्पावक दीदिहि ॥४॥ हे अग्निदेव ! वे विश्वचर्षणि ऋषि शत्रुओं के संघर्षक बल को धारण करें । हे तेजस्वी अग्निदेव! हमारे घरों में धनों का प्रकाश विस्तीर्ण करें । हे पापशोधक अग्निदेव ! आप उत्तम तेजों से युक्त होकर देदीप्यमान हों ॥४॥

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