ऋग्वेद पंचम मण्डलं सूक्त ४६

ऋग्वेद-पंचम मंडल सूक्त ४६ ऋषिः प्रतिक्षत्र आत्रेयः देवता - विश्वेदेवा, ७-८ देवपत्न्यः । छंद जगती, २,८ त्रिष्टुप हयो न विद्वाँ अयुजि स्वयं धुरि तां वहामि प्रतरणीमवस्युवम् । नास्या वश्मि विमुचं नावृतं पुनर्विद्वान्पथः पुरएत ऋजु नेषति ॥१॥ अश्व जिस प्रकार रथ के जुए में जुड़ जाता है, उसी प्रकार विद्वान् (प्रतिक्षत्र) धुरी (यज्ञ) के साथ स्वयं योजित हो जाते हैं। हम भी उस विघ्नहर्ता और रक्षणकर्ता यज्ञ के भार को वहन करते हैं। इस भार- वहन से विमुक्त होने की इच्छा हम नहीं करते, बल्कि बारम्बार भार को धारण करने की कामना करते हैं। हे मार्ग जानने वाले देव! आप हमारे मार्ग में अग्रगामी होकर सरल मार्ग द्वारा हमें ले चलें ॥१॥ अग्न इन्द्र वरुण मित्र देवाः शर्धः प्र यन्त मारुतोत विष्णो । उभा नासत्या रुद्रो अध ग्नाः पूषा भगः सरस्वती जुषन्त ॥२॥ हे अग्नि, इन्द्र, वरुण, मित्र, मरुत् और विष्णु आदि देवताओ ! आप हमें सामर्थ्य प्रदान करें। दोनों अश्विनीकुमार, रुद्र, देवपलियाँ, पूषा, भग, सरस्वती हमारी हवियाँ ग्रहण करें ॥२॥ इन्द्राग्नी मित्रावरुणादितिं स्वः पृथिवीं द्यां मरुतः पर्वताँ अपः । हुवे विष्णुं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं भगं नु शंसं सवितारमूतये ॥३॥ इन्द्र, अग्नि, मित्र, वरुण, अदिति, पृथ्वी, द्युलोक, आदित्य, मरुत्, पर्वत समूह, जल, विष्णु, पूषा, ब्रह्मणस्पति, भगदेव और सविता आदि देवों का हम आवाहन करते हैं, वे इस यज्ञशाला में शीघ्र पधारें एवं हमारी रक्षा करें ॥३॥ उत नो विष्णुरुत वातो अस्रिधो द्रविणोदा उत सोमो मयस्करत् । उत ऋभव उत राये नो अश्विनोत त्वष्टोत विभ्वानु मंसते ॥४॥ विष्णुदेव और अहिंसक वायुदेव तथा धन प्रदाता सोमदेव हमें सर्व सुख प्रदान करें। ऋभुगण, दोनों अश्विनीकुमार, त्वष्टा और विभुगण; ये सभी देव हमें ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए अनुकूल प्रेरणा प्रदान करें ॥४॥ उत त्यन्नो मारुतं शर्ध आ गमद्दिविक्षयं यजतं बर्हिरासदे । बृहस्पतिः शर्म पूषोत नो यमद्वरूथ्यं वरुणो मित्रो अर्यमा ॥५॥ वे स्वर्ग में रहने वाले एवं पूजनीय मरुद्गण हमारे यज्ञ में कुशाओं पर बैठने के लिए आगमन करें। बृहस्पति, पूषा, वरुण, मित्र और अर्यमादेव हमें गृह सम्बन्धी सभी सुख प्रदान करें ॥५॥ उत त्ये नः पर्वतासः सुशस्तयः सुदीतयो नद्यस्त्रामणे भुवन् । भगो विभक्ता शवसावसा गमदुरुव्यचा अदितिः श्रोतु मे हवम् ॥६॥ वे उत्तम स्तुति के योग्य और दान देने वाली नदियाँ, हमारे परित्राण के लिए उद्यत हों। वे धनों को बाँटने वाले भगदेव अपने बल और संरक्षण साधनों के साथ हमारे निकट आगमन करें। व्यापक प्रभायुक्त अदिति देवी हमारे आवाहन को सुनें ॥६॥ देवानां पत्नीरुशतीरवन्तु नः प्रावन्तु नस्तुजये वाजसातये । याः पार्थिवासो या अपामपि व्रते ता नो देवीः सुहवाः शर्म यच्छत ॥७॥ इन्द्रादि देवों की पत्नियाँ (स्तुतियों से) उत्साहित होकर हमारी रक्षा करें। उनके संरक्षण में हम पुत्रों और अन्न आदि के लाभ प्राप्त करें । ये देवियाँ चाहे पृथ्वी पर हों या अन्तरिक्ष और द्युलोक में हों; हमारे उत्तम आवाहन को सुनकर हमें सभी सुख प्रदान करने हेतु पधारें ॥७ ॥ उत ग्ना व्यन्तु देवपत्नीरिन्द्राण्यग्नाय्यश्विनी राट् । आ रोदसी वरुणानी शृणोतु व्यन्तु देवीर्य ऋतुर्जनीनाम् ॥८॥ सभी देवियाँ, देवपलियाँ भली प्रकार हमारी रक्षा करें । इन्द्राणी, अग्नायी, दीप्तिमती, अश्विनी, रोदसी, वरुणानी हमें परिरक्षित करें । इनके मध्य जो ऋतुओं की जन्मदात्री देवी हैं, वे भी हमारी स्तुतियाँ श्रवण करें ॥८॥

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