ऋग्वेद पंचम मण्डलं सूक्त ९

ऋग्वेद - पंचम मंडल सूक्त ९ ऋषि - गय आत्रेयः देवता - अग्नि । छंद - अनुष्टुप, ५,७ पंक्ति त्वामग्ने हविष्मन्तो देवं मर्तास ईळते । मन्ये त्वा जातवेदसं स हव्या वक्ष्यानुषक् ॥१॥ हे तेजस्वी अग्निदेव ! हम मनुष्य हवि पदार्थों से युक्त होकर आपकी उत्तम स्तुति करते हैं। आप सम्पूर्ण उत्पन्न जीवों को जानने वाले हैं। आप हमारी हवियों को देवों तक पहुँचाने वाले हैं ॥१॥ अग्निर्होता दास्वतः क्षयस्य वृक्तबर्हिषः । सं यज्ञासश्चरन्ति यं सं वाजासः श्रवस्यवः ॥२॥ सभी यज्ञ जिन अग्निदेव का अनुगमन करते हैं। अन्न और यश की कामना करने वाले यजमानों के हव्य जिन्हें प्राप्त होते हैं, वे अग्निदेव हविदाताओं और कुश उच्छेदक यजमानों के घर, 'होता' रूप में प्रतिष्ठित होते हैं ॥२॥ उत स्म यं शिशुं यथा नवं जनिष्टारणी । धर्तारं मानुषीणां विशामग्निं स्वध्वरम् ॥३॥ मनुष्यों का पोषण करने वाले अग्निदेव उत्तम रीति से यज्ञ-सम्पन्न करने वाले हैं। दो अरणियाँ इन अग्निदेव । को नये शिशु की तरह उत्पन्न करती हैं ॥३॥ उत स्म दुर्गभीयसे पुत्रो न ह्वार्याणाम् । पुरू यो दग्धासि वनाग्ने पशुर्न यवसे ॥४॥ हे अग्निदेव ! कुटिल गति वाले सर्प या अश्व के शिशु के समान आप अति दुर्गमता से धारण किए जाने वाले हैं। जौ के खेत में प्रविष्ट हुआ पशु जैसे जौ को खा जाता है, उसी प्रकार वनों में प्रविष्ट हुए आप वनों को भस्म कर देते हैं ॥४॥ अध स्म यस्यार्चयः सम्यक्संयन्ति धूमिनः । यदीमह त्रितो दिव्युप ध्मातेव धमति शिशीते ध्मातरी यथा ॥५॥ अग्नि की धूम्रयुक्त शिखायें सर्वत्र व्याप्त होती हैं। लोहार अस्त्रादि द्वारा अग्नि को प्रवृद्ध करते हैं। यह संवर्द्धित अग्नि तीनों लोकों में व्याप्त होती है। कर्मकार (लुहार आदि) जिस प्रकारे धौंकनी (धमने यन्त्र) द्वारा अग्नि को प्रज्वलित करते हैं, ये अग्निदेव उसी प्रकार स्वयं तेजस्वी बन जाते हैं ॥५॥ तवाहमग्न ऊतिभिर्मित्रस्य च प्रशस्तिभिः । द्वेषोयुतो न दुरिता तुर्याम मर्त्यानाम् ॥६॥ हे अग्निदेव ! हम आपके मित्र भाव से युक्त होकर आपके निमित्त प्रशंसात्मक स्तोत्रों से आपका स्तवन करते हैं। आप अपने रक्षण सामथ्र्यों से संरक्षित कर हमें पाप कर्मों से पार करें और द्वेष करने वाले बाहरी शत्रुओं से भी पार करें ॥६॥ तं नो अग्ने अभी नरो रयिं सहस्व आ भर । स क्षेपयत्स पोषय‌द्भुवद्वाजस्य सातय उतैधि पृत्सु नो वृधे ॥७॥ हे बलवान् अग्निदेव ! आप हम मनुष्यों को उत्तम ऐश्वर्य से सम्पन्न बनायें । आप हमारे शत्रुओं को विनष्ट करें और हमें सब प्रकार से पोषण प्रदान करें। अन्नों की प्राप्ति हमारे निमित्त सुगम हो । हे आग्ने ! युद्धों में हमें अग्रणी बनाने का यत्न करें ॥७॥

Recommendations