ऋग्वेद द्वितीय मंडल सूक्त २९
ऋग्वेद - द्वितीय मंडल सूक्त २९ ऋषिः- कूर्मो गार्त्समदो, गृत्समदो वा देवता- विश्वेदेवा: । छंद- त्रिष्टुप धृतव्रता आदित्या इषिरा आरे मत्कर्त रहसूरिवागः । शृण्वतो वो वरुण मित्र देवा भद्रस्य विद्वाँ अवसे हुवे वः ॥१॥ हे व्रतधारी, सर्वत्र गमनशील आदित्यगण ! गुप्त रहस्य की भॉति हमारे पापों को हमसे दूर करें। हे मित्र एवं वरुणदेवो ! आपके मंगलकारी कार्यों को जानकर हम संरक्षण के लिए आपका आवाहन करते हैं, आप हमारी प्रार्थना को स्वीकार करें ॥१॥ यूयं देवाः प्रमतिर्यूयमोजो यूयं द्वेषांसि सनुतर्युयोत । अभिक्षत्तारो अभि च क्षमध्वमद्या च नो मृळयतापरं च ॥२॥ हे देवगण ! आप श्रेष्ठ बुद्धि वाले हैं, तेजस्वी हैं तथा द्वेषियों के छल को प्रकट करने वाले हैं। आप शत्रुनाशक हैं; अतः शत्रुओं का संहार करें तथा हमारा वर्तमान और भविष्य सुखमय बनायें ॥२॥ किमू नु वः कृणवामापरेण किं सनेन वसव आप्येन । यूयं नो मित्रावरुणादिते च स्वस्तिमिन्द्रामरुतो दधात ॥३॥ हे आश्रयदाता देवगण ! पूर्व में किये गये अपने कर्मों से हमें आपका किस प्रकार आदर सत्कार करें, हे मित्र, वरुण, अदिति, इन्द्र तथा मरुद्गणो ! आप सभी देवगण हमारा कल्याण करें ॥३॥ हये देवा यूयमिदापयः स्थ ते मृळत नाधमानाय मह्यम् । मा वो रथो मध्यमवाळूते भून्मा युष्मावत्स्वापिषु श्रमिष्म ॥४॥ हे देवगणो ! आप ही हमारे हितैषी सखा हैं; अतः हम आपकी स्तुति करते हैं, आप हमें सुखी बनायें। हमारे यज्ञ में आपका रथ तीव्र गति से आये । हम आपके समान सखा पाकर सदैव स्तुतियाँ करते रहें, थकें नहीं ॥४॥ प्र व एको मिमय भूर्यागो यन्मा पितेव कितवं शशास । आरे पाशा आरे अघानि देवा मा माधि पुत्रे विमिव ग्रभीष्ट ॥५॥ हे देवो! आपने हमें पिता की भाँति उपदेश दिया है, अतः हमने अपने अनेकों पापों को नष्ट कर दिया है। हे देवो ! पाप तथा पाश हमसे दूर रहें। व्याध द्वारा पक्षी की तरह पुत्र के सामने (निर्दयतापूर्वक) हमें न पकड़े ॥५॥ अर्वाञ्चो अद्या भवता यजत्रा आ वो हार्दि भयमानो व्ययेयम् । त्राध्वं नो देवा निजुरो वृकस्य त्राध्वं कर्तादवपदो यजत्राः ॥६॥ हे पूज्य देवगणो ! आप आज हमारे सामने प्रकट हों, भयभीत होकर हम आपके हृदय के समान प्रिय आश्रय को प्राप्त करें। हे पूज्य देवगणो ! कष्टदायी दुष्ट शत्रुओं से आपत्ति काल में हमारी हर प्रकार से रक्षा करें ॥६॥ माहं मघोनो वरुण प्रियस्य भूरिदाव्न आ विदं शूनमापेः । मा रायो राजन्त्सुयमादव स्थां बृहद्वदेम विदथे सुवीराः ॥७॥ हे वरुणदेव ! सबको सन्तुष्ट करने वाले ऐश्वर्यशाली दानदाता की सुख-समृद्धि से हम कभी ईष्या न करें, उन्हें बन्धुवत् मानें । हे वरुणदेव ! आवश्यक धन प्राप्त होने पर हम अहंकारी न बनें, श्रेष्ठ सन्तति सहित यज्ञ में देवों की स्तुतियाँ करें ॥७॥