ऋग्वेद पंचम मण्डलं सूक्त ७२

ऋग्वेद-पंचम मंडल सूक्त ७२ ऋषिः बाहुवृक्त आत्रेयः देवता - मित्रावरुणौ । छंद - गायत्री आ मित्रे वरुणे वयं गीर्भिर्जुहुमो अत्रिवत् । नि बर्हिषि सदतं सोमपीतये ॥१॥ अत्रि वंशजों की तरह हम भी मित्र और वरुणदेवों का स्तुतियों द्वारा आवाहन करते हैं। हे देवो! सोमपान के निमित्त कुशाओं पर अधिष्ठित हों ॥१॥ व्रतेन स्थो ध्रुवक्षेमा धर्मणा यातयज्जना । नि बर्हिषि सदतं सोमपीतये ॥२॥ हे शत्रुविनाशक मित्र और वरुणदेवो! आप अपने धर्मयुक्त नियमों के कारण अटल-आश्रय में स्थित हैं। आप सोमपान के निमित्त कुश के आसन पर अधिष्ठित हों ॥२॥ मित्रश्च नो वरुणश्च जुषेतां यज्ञमिष्टये । नि बर्हिषि सदतां सोमपीतये ॥३॥ हे मित्रावरुणो ! हमारे यज्ञ को स्वेच्छापूर्वक ग्रहण करें । आप सोमपान के निमित्त कुशाओं पर आसीन हों ॥३॥

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