ऋग्वेद तृतीय मण्डलं सूक्त १९

ऋग्वेद - तृतीय मंडल सूक्त १९ ऋषि - गाथी कौशिकः देवता - अग्निः । छंद - त्रिष्टुप अग्निं होतारं प्र वृणे मियेधे गृत्सं कविं विश्वविदममूरम् । स नो यक्षद्देवताता यजीयात्राये वाजाय वनते मघानि ॥१॥ स्तुतिपूर्वक देवताओं का आवाहन करने वाले मेधावान्, ज्ञानवान् अग्निदेव को हम यज्ञ में विशेष रूप से वरण करते हैं। वे पूज्य अग्निदेव हमारे निमित्त देवों का यजन करें। हमें विपुल धन-धान्य प्रदान करने के लिए हमारी हवियों को स्वीकार करें ॥१॥ प्र ते अग्ने हविष्मतीमियर्म्यच्छा सुद्युम्नां रातिनीं घृताचीम् । प्रदक्षिणिदेवतातिमुराणः सं रातिभिर्वसुभिर्यज्ञमश्रेत् ॥२॥ हे अग्निदेव ! हम घृत आदि हव्य पदार्थों से परिपूर्ण पात्र को नित्य आपकी ओर प्रेरित करते हैं। देवताओं का आवाहन करने वाले आप, हमारे वैभव को बढ़ाने की कामना से यज्ञ स्थल पर भलीप्रकार उपस्थित हों ॥२॥ स तेजीयसा मनसा त्वोत उत शिक्ष स्वपत्यस्य शिक्षोः । अग्ने रायो नृतमस्य प्रभूतौ भूयाम ते सुष्टुतयश्च वस्वः ॥३॥ हे अग्निदेव ! आप जिसकी रक्षा करते हैं, उसका मन अत्यन्त तेजस्वी होता है। आप उसे उत्तम धन, सन्तान प्रदान करें। धन-प्रदाता, उत्तम प्रेरक हे अग्ने ! हम आपके विपुल ऐश्वर्य के संरक्षण में निवास करें और आपकी स्तुतियाँ करते हुए धन के स्वामी बनें ॥३॥ भूरीणि हि त्वे दधिरे अनीकाग्ने देवस्य यज्यवो जनासः । स आ वह देवतातिं यविष्ठ शर्धी यदद्य दिव्यं यजासि ॥४॥ हे अग्निदेव देवों की पूजा-यज्ञादि करने वाले मनुष्यों ने आपमें प्रचुर मात्रा में दीप्ति उत्पन्न की है। सर्वदा तरुण रहने वाले आप यज्ञ में देवों के दिव्य तेज की पूजा करते हैं, अतएव हमारे इस यज्ञ में उन्हें साथ लेकर आयें ॥४॥ यत्त्वा होतारमनजन्मियेधे निषादयन्तो यजथाय देवाः । स त्वं नो अग्नेऽवितेह बोध्यधि श्रवांसि धेहि नस्तनूषु ॥५॥ देवताओं का आवाहन करने वाले हे अग्निदेव ! यज्ञ के लिए बैठे हुए दीप्तिमान् त्वगण आपको प्रतिष्ठित कर घृतादि द्वारा सिंचित करते हैं । आप हमारे यज्ञ में चैतन्य होकर हमें संरक्षण प्रदान करें। हमारे पुत्रों को आप प्रचुर मात्रा में धन-धान्य प्रदान करें ॥५॥

Recommendations