ऋग्वेद पंचम मण्डलं सूक्त ३६

ऋग्वेद-पंचम मंडल सूक्त ३६ ऋषिः प्रभुवसुरागिंरसः देवता - इन्द्र, । छंद - त्रिष्टुप, ३ जगती स आ गमदिन्द्रो यो वसूनां चिकेतद्दातुं दामनो रयीणाम् । धन्वचरो न वंसगस्तृषाणश्चकमानः पिबतु दुग्धमंशुम् ॥१॥ जो धनों को देना जानते हैं, जो धनों के अनुपम दाता हैं; ऐसे इन्द्रदेव हमारे यज्ञ में आएँ। जैसे धनुर्धारी वीर शिकार की कामना करता है, वैसे ही तृषित इन्द्रदेव सोम की कामना करते हुए दुग्ध मिश्रित सोमरस का पान करे ॥१॥ आ ते हनू हरिवः शूर शिप्रे रुहत्सोमो न पर्वतस्य पृष्ठे । अनु त्वा राजन्नर्वतो न हिन्वन्गीर्भिर्मदम पुरुहूत विश्वे ॥२॥ हे अश्वयुक्त शूर इन्द्रदेव! जैसे सोम पर्वत के पृष्ठ भाग पर रहता है, वैसे यह सोम आपके सुन्दर होंठ पर चढ़े। बहुतों के द्वारा आवाहन किए जाने वाले दीप्तिमान् हे इन्द्रदेव! जैसे अश्व तृण खाकर तृप्त होता है, वैसे आप हमारी स्तुतियों को पाकर तृप्त हों, जिससे हम भी प्रमुदित हों ॥२॥ चक्रं न वृत्तं पुरुहूत वेपते मनो भिया मे अमतेरिदद्रिवः । रथादधि त्वा जरिता सदावृध कुविन्नु स्तोषन्मघवन्पुरुवसुः ॥३॥ बहुतों के द्वारा स्तुत, वज्रधारण करने वाले है इन्द्रदेव ! जैसे गोल चक्र घूमते हुए काँपता है, उसी प्रकार हमारा मन बुद्धिहीनता के कारण भय से काँपता है। हे सर्वदा वर्धमान इन्द्रदेव ! आप असंख्यों धनों के अधीश्वर और अत्यन्त ऐश्वर्यशाली हैं। हम स्तोतागण बारम्बार आपका स्तवन करते हैं। आप धन से युक्त रथ पर आरूढ़ होकर हमारे पास आएँ ॥३॥ एष ग्रावेव जरिता त इन्द्रेयर्ति वाचं बृहदाशुषाणः । प्र सव्येन मघवन्यंसि रायः प्र दक्षिणिद्धरिवो मा वि वेनः ॥४॥ जैसे सोम अभिषव करने वाला पाषाण शब्द करता है, वैसे हम स्तोता स्तुति करते हुए शब्द करते हैं। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव ! आप विपुल धन-सम्पन्न हैं। आप बाँयें और दायें दोनों हाथों से धन दान करने वाले हैं, हे दो अश्वों वाले इन्द्रदेव! आप हमारी कामनाओं को विफल न करें ॥४॥ वृषा त्वा वृषणं वर्धतु द्यौर्वृषा वृषभ्यां वहसे हरिभ्याम् । स नो वृषा वृषरथः सुशिप्र वृषक्रतो वृषा वज्रिन्भरे धाः ॥५॥ हे बलशाली इन्द्रदेव ! बल-संयुक्त आकाश आपके बलों को संवर्धित करे । बल-सम्पन्न आप अति बलवान् अश्वों द्वारा वहन किये जाते हैं । उत्तम शिरस्त्राण और वज्र धारण करने वाले हे इन्द्रदेव ! आप अतीव बल-सम्पन्न कर्म करने वाले हैं। अत्यन्त बलशाली रथ पर अधिष्ठित होने वाले आप संग्राम में भली-भाँति हमारी रक्षा करें ॥५॥ यो रोहितौ वाजिनौ वाजिनीवान्त्रिभिः शतैः सचमानावदिष्ट । यूने समस्मै क्षितयो नमन्तां श्रुतरथाय मरुतो दुवोया ॥६॥ इन्द्रदेव के सहायक हे मरुतो! अन्नवान् श्रुतरथ राजा ने समान गति वाले एवं रोहित वर्ण वाले दो अश्व और तीन सौ गौएँ हमें प्रदान की। ऐसे तरुण श्रुतरथ के लिए उनकी समस्त प्रज्ञाएँ सेवा भाव से युक्त होकर नमन करती हैं ॥६॥

Recommendations