ऋग्वेद द्वितीय मंडल सूक्त ३२

ऋग्वेद - द्वितीय मंडल सूक्त ३२ ऋषिः- गृत्समद (अंगीरसः शौन होत्रः पश्चयाद) भार्गवः शौनकः। देवता - १ द्यावा पृथ्वी, २-३ इन्द्र त्वष्टा, ४-५ राका, ६-७ सिनीवाली, ८ लिंगोक्ता। छंद - जगती, ६-८ अनुष्टुप अस्य मे द्यावापृथिवी ऋतायतो भूतमवित्री वचसः सिषासतः । ययोरायुः प्रतरं ते इदं पुर उपस्तुते वसूयुर्वा महो दधे ॥१॥ हे द्यावा-पृथिवि ! आपको प्रसन्न करने की कामना करने वाले स्तोताओं के आप आश्रयदाता हैं। आप दोनों की हम स्तुति करते हैं । आप हमें उत्तम बल तथा धन प्रदान करें ॥१॥ मा नो गुह्या रिप आयोरहन्दभन्मा न आभ्यो रीरधो दुच्छुनाभ्यः । मा नो वि यौः सख्या विद्धि तस्य नः सुम्नायता मनसा तत्त्वेमहे ॥२॥ हे इन्द्रदेव ! शत्रुओं की गुप्त माया दिन या रात में हमें न मारने पाये । इन दुःखदायी विपत्तियों से हमें पीड़ित न करें हम आपकी मित्रता की कामना करते हैं; अतः सुख की कामनावाले भाव को जानकर उन्हें टूटने न दें ॥२॥ अहेळता मनसा श्रुष्टिमा वह दुहानां धेनुं पिप्युषीमसश्चतम् । पद्याभिराशुं वचसा च वाजिनं त्वां हिनोमि पुरुहूत विश्वहा ॥३॥ हे इन्द्रदेव! आप द्रुतमामी तथा मृदुभाषी हैं। आप हमें प्रसन्नतापूर्वक सुखकारी, दुधारू तथा परिपुष्ट गौएँ प्रदान करें। हम आपकी दिन- रात स्तुति करते हैं॥३॥ राकामहं सुहवां सुष्टुती हुवे शृणोतु नः सुभगा बोधतु त्मना । सीव्यत्वपः सूच्याच्छिद्यमानया ददातु वीरं शतदायमुक्थ्यम् ॥४॥ हम उत्तम स्तोत्रों के द्वारा आवाहन के योग्य 'राका' एवं 'पूर्णिमा देवियों का आवाहन करते हैं। ये ऐश्वर्यशालिनी देवियाँ हमारी प्रार्थना को स्वीकार करके कभी न टूटने वाले संकल्प रूपी कर्मों को सुदृढ़ बनायें तथा प्रशंसनीय धन तथा वीर संतति प्रदान करें ॥४॥ यास्ते राके सुमतयः सुपेशसो याभिर्ददासि दाशुषे वसूनि । ताभिर्नो अद्य सुमना उपागहि सहस्रपोषं सुभगे रराणा ॥५॥ हे ऐश्वर्यशालिनि राका देवि ! आप जि! उत्तम बुद्धियों से याज्ञिकों को श्रेष्ठ धन प्रदान करती हैं, आज उन्हीं श्रेष्ठ बुद्धियों से युक्त होकर अनेक प्रकार के श्रेष्ठ धन तथा पौष्टिक अन्न सहित हमारे पास पधारें ॥५॥ सिनीवालि पृथुष्टुके या देवानामसि स्वसा । जुषस्व हव्यमाहुतं प्रजां देवि दिदिड्डि नः ॥६॥ हे विराट् स्वरूपा सिनीवाली देवि ! आप देवताओं की बहिन हैं। हे देवि ! अग्नि में समर्पित की गयी आहुतियों को ग्रहण करके हमें उत्तम सन्तति प्रदान करें ॥६॥ या सुबाहुः स्वङ्गुरिः सुषूमा बहुसूवरी । तस्यै विश्पत्यै हविः सिनीवाल्यै जुहोतन ॥७॥ हे याजको ! जो सिनीवाली देवी उत्तम भुजाओं तथा सुन्दर अँगुलियों वाली, श्रेष्ठ पदार्थों तथा उत्तम प्रजाओं की जनक हैं, उन प्रजापालक सिनीवाली देवी के लिए हविष्यान्न प्रदान करें ॥७॥ या गुङ्ग्र्या सिनीवाली या राका या सरस्वती । इन्द्राणीमह्व ऊतये वरुणानीं स्वस्तये ॥८॥ जो गुंगू, जो सिनीवाली, जो राका, जो सरस्वती आदि देवियाँ हैं, उन्हें हम अपने संरक्षण की कामना से आवाहित करते हैं। इन्द्राणी तथा वरुणानी देवियों को भी अपने कल्याण की कामना से आवाहित करते हैं॥८॥

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